सदाशिवगढ़ | |
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स्थानीय नाम Sadashivgad ಸದಾಶಿವಗಡ | |
नामोत्पत्ति | राजा बासवलिंगराज के पिता सदाशिवलिंगराज पर नामकरण |
स्थान | सोंदा, कारवार तालुका, उत्तर कन्नड़ ज़िला, कर्नाटक, भारत |
निर्देशांक | 14°50′48″N 74°07′54″E / 14.8467°N 74.1318°Eनिर्देशांक: 14°50′48″N 74°07′54″E / 14.8467°N 74.1318°E |
निर्माण | लगभग 1715 ई |
सदाशिवगढ़ (Sadashivgad) भारत के कर्नाटक राज्य के उत्तर कन्नड़ ज़िले की कारवार तालुका में स्थित एक बस्ती है, जहाँ एक ऐतिहासिक दुर्ग स्थित है। यह काली नदी के उत्तरी तट पर उस स्थान पर स्थित है जहाँ काली नदी का अरब सागर में नदीमुख है। यह गोवा की राज्य सीमा के समीप है।[1][2]
सदाशिवगढ़ का दुर्ग काली नदी के उत्तरी किनारे नदी के सागर में विलयस्थल के पास एक ऊँचे स्थान पर स्थित है। इसकी दीवारें लगभग 8 मीटर ऊँची और अपने ऊपरी भाग में 2 मीटर चौड़ी हुआ करती थीं। स्थान-स्थान पर बुर्ज थे, जिनमें बन्दूक टिकाने के लिए खोल बने हुए थे। सबसे ऊँचे भाग में दुर्गकेन्द्र का ढांचा था, जिसमें एक चाप वाला द्वार था। पश्चिम में सागर से सम्मुख एक अलग छोटा स्थापत्य था, जिसे "पानी किला" कहा जाता था। पूर्वी ढलान पर 60x20 मीटर आकार का एक और अलग छोटा दुर्ग है, जिसका नाम समवारगढ़ है, जिसे पूर्व और पूर्वोत्तर की ओर पहरा देने के लिए बनाया गया था।
दुर्ग का नाम सोंदा के स्थानीय मुखिया, बासवलिंगराज, ने सन् 1715 में अपने पिता सदाशिवलिंगराज की स्मृति में रखा था। इनके वंश ने चित्तकुला, सिमवेश्वर, कदरा, कारवार, अंकोला और कुछ अन्य क्षेत्रों कर नियंत्रण पा लेने के बाद स्वयं को राजा घोषित करा था। इसकी निर्माण सामग्री पुराने कारवार दुर्ग से ली गई थी।