सफर | |
---|---|
सफर का पोस्टर | |
निर्देशक | असित सेन |
लेखक | इन्दर राज आनन्द (संवाद) |
कहानी | आशुतोष मुखर्जी |
निर्माता | मुशीर-रियाज़ |
अभिनेता |
शर्मिला टैगोर, राजेश खन्ना, फ़िरोज़ ख़ान |
छायाकार | कमल बोस |
संपादक | तरुण दत्ता |
संगीतकार | कल्याणजी-आनंदजी |
प्रदर्शन तिथि |
1970 |
लम्बाई |
140 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
सफर 1970 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्देशन असित सेन ने किया और यह बंगाली लेखक आशुतोष मुखर्जी के उपन्यास पर आधारित है। फ़िल्म में अशोक कुमार, राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर और फ़िरोज़ ख़ान मुख्य भूमिकाओं में हैं। यह फिल्म 1969 और 1971 के बीच राजेश खन्ना की लगातार 17 हिट फिल्मों में से एक है। इसमें दो नायक वाली फिल्मों मर्यादा और अंदाज़ को उनकी 15 एकल हिट फिल्मों में गिना गया।
फिल्म एक मरीज को बचाने के लिए सर्जन डॉ. नीला (शर्मिला टैगोर) के हताश प्रयास के साथ शुरू होती है। वह जानती है कि वह जीवित नहीं रह पायेगा। वह डॉ. चन्द्रा (अशोक कुमार) के मार्गदर्शन में काम करती है। कहानी एक फ्लैशबैक में जाती है। नीला, मेडिकल कॉलेज में अविनाश (राजेश खन्ना) से मिलती है और शुरुआती गलतफहमी के बाद, उसके करीब आ जाती है। अविनाश एक गरीब आदमी है जो मेडिकल कॉलेज में पढ़ता है। वह पेंट भी करता है और नीला को पता चलता है कि उसकी ज्यादातर पेंटिंग उसकी ही हैं। हालाँकि वह नीला की बहुत प्रशंसा करता है, लेकिन वह कभी भी प्यार या शादी की बात नहीं करता है। हर कोई सोचता है ऐसा वह अपनी वित्तीय स्थिति के कारण नहीं करता है, लेकिन यह बाद में पता चलता है कि उसे कैंसर है।
नीला, वित्तीय परेशानियों के कारण, एक ट्यूटर के रूप में काम करना शुरू कर देती है जहाँ वह अपने छात्र के बड़े भाई, व्यवसायी शेखर कपूर (फ़िरोज़ ख़ान) से मिलती है। शेखर उसकी प्रशंसा करता है और बाद में उसके बड़े भाई कालिदास (आई॰ एस॰ जौहर) से शादी में उसका हाथ मांगता है। शेखर, अविनाश से मिलता है, जो उसे स्वीकार करता है। नीला समझ जाती है कि अविनाश का उससे शादी करने का कोई इरादा नहीं है, इसलिए वह शेखर से शादी करने के लिए राजी हो जाती है। वे कुछ समय खुशी से बिताते हैं, लेकिन शेखर को हमेशा लगता है कि नीला उससे उतना प्यार नहीं करेगी जितना वह उससे प्यार करता है। व्यापार में नुकसान का सामना करते हुए, वह नीला की सहानुभूति की उम्मीद करता है, लेकिन उसे वह नहीं मिलती।
इसके अलावा, नीला नियमित रूप से अपने भाई के घर जाती है जहां अविनाश अक्सर आता-जाता था। शेखर धीरे-धीरे नीला और अविनाश पर शक करने लगता है और अपने छोटे भाई से उनकी जासूसी करने के लिए कहता है। बाद में उसे एक प्रेम पत्र मिलता है, जिसे अविनाश ने सिर्फ मनोरंजन के लिए नीला की लिखावट में लिखा है। शेखर सोचता है कि नीला ने ये लिखा है। वह उसे अपने से मुक्त करना चाहता है और आत्महत्या कर लेता है। पुलिस को शक होता है कि नीला और अविनाश ने उसकी हत्या कर दी है और अविनाश के गायब होते ही नीला को गिरफ्तार कर लिया जाता है।
मुकदमे में, शेखर की माँ श्रीमती कपूर (नादिरा) नीला के पक्ष में गवाही देती है और अदालत उसे बरी कर देती है। बाद में यह पता चलता है कि अविनाश उनके वैवाहिक जीवन से दूर जाने के लिए चला गया था। वह यह नहीं जानता है कि शेखर ने आत्महत्या कर ली थी। बाद में, वह अपनी बीमारी के अंतिम चरण में वापस आता है और डॉ. चन्द्रा के अस्पताल में मर जाता है। दिल टूटी नीला अब और जीना नहीं चाहती, लेकिन डॉ. चन्द्रा उसे सांत्वना देते हैं और उसे एक महान सर्जन बनने के लिये प्रोत्साहित करते हैं। फिल्म नीला की अपने देवर को पढ़ाई के लिए विदेश भेजने और चिकित्सा पेशे के लिए अपना जीवन समर्पित करने के साथ समाप्त होती है।
सभी गीत इन्दीवर द्वारा लिखित; सारा संगीत कल्याणजी-आनंदजी द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
---|---|---|---|
1. | "जिन्दगी का सफर" | किशोर कुमार | 4:00 |
2. | "जीवन से भरी तेरी" | किशोर कुमार | 3:25 |
3. | "जो तुमको हो पसंद" | मुकेश | 4:40 |
4. | "नदिया चले चले रे" | मन्ना डे | 4:16 |
5. | "हम थे जिनके सहारे" | लता मंगेशकर | 4:00 |
प्राप्तकर्ता और नामांकित व्यक्ति | पुरस्कार वितरण समारोह | श्रेणी | परिणाम |
---|---|---|---|
असित सेन | फिल्मफेयर पुरस्कार | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार | जीत |
शर्मिला टैगोर | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | नामित | |
फ़िरोज़ ख़ान | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार | नामित |