एफ़्लुएंज़ा (Affluenza) अथवा सम्पन्नता धनी लोगों को प्रभावित करने वाला एक छद्म मनोवैज्ञानिक रोग है। यह समृद्धि और इनफ़्लुएंज़ा का मिला हुआ प्रभाव है जो उपभोक्तावादियों द्वारा व्यंग्यात्मक रूप से काम में लिया जाता है। यह चिकित्सीय रूप से पहचाना गया रोग नहीं है।[1]
एफ़्लुएंज़ा शब्द का सबसे पहला प्रयोग 1954 में माना जाता है।[2] लेकिन इस शब्द को लोकप्रियता पब्लिक ब्रोडकास्टिंग सर्विस के 1997 में इसी नाम से प्रसारित वृत्तचित्र से मिली।[3] इसके बाद इसी नाम की पुस्तक 2001 में प्रकाशित हुई जिसके संशोधित संस्करण 2005 और 2014 में जारी हुये और शब्द को और अधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। इन सभी स्रोतों में एफ़्लुएंज़ा को "अधिक पाने की हठधर्मिता के परिणामस्वरूप होने वाले ऋण, चिंता और अपशिष्ट की एक दर्दनाक, संक्रामक, सामाजिक रूप से प्रसारित स्थिति" के रूप में परिभाषित करते हैं। अधिक अनौपचारिक परिभाषा के रूप में इसे "दूसरों के समक्ष किसी की अपनी सामाजिक-आर्थिक श्रेष्ठता प्राप्त करने के अपराध बोध के कारण होने वाली एक अर्ध-बीमारी" कहा जाता है।[4]
2007 में ब्रिटिश मनोविज्ञानी ओलिवर जेम्स ने इस बात पर जोर दिया कि एफ़्लुएंज़ा के मामले बढ़ने और अर्थिक असमानता की वृद्धि में सह-संबंध है: समाज में अधिक असमानता से नागरिकों में अधिक असम्पन्नता होती है।[5] वेंस पैकार्ड ने विज्ञापनों की दुनिया में तिकड़मबाजी पर अपने कार्य द हिडन पर्सुडेर्स में लिखा, जिसमें उन्होंने लिखा है कि एफलुयेंज़ा में वृद्धि से लोगों की कृत्रिम आवश्यकताओं के प्रति उत्तेजना बढ़ती है। समाज में विभिन्न स्तर की असमानता में एफ़्लुएंज़ा के प्रभाव को अधिक दिखाने के लिए जेम्स ने सिडनी, सिंगापुर, ऑक्लैण्ड, मास्को, शंघाई, कोपनहेगन और न्यूयॉर्क सहित विभिन्न शहरों में लोगों के साक्षात्कार किये।