सरिय्या हज़रत अम्र बिन आस रज़ि० (सुवाअ) | |||||||
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मुहम्मद की सैन्य उपलब्धियाँ का भाग | |||||||
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सेनानायक | |||||||
हज़रत अम्र बिन आस रज़ि० | अनजान |
सरिय्या हज़रत अम्र बिन आस रज़ि० (सुवाअ)सहाबी हज़रत अम्र बिन आस रज़ि० का छापा सैन्य अभियान मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदेश पर जनवरी 630 ईस्वी, और इस्लामी कैलेंडर के 9वें महीने 8 हिजरी में हुआ।
अर्रहीकुल मख़तूम में इस्लाम के विद्वान सफिउर्रहमान मुबारकपुरी लिखते हैं कि मक्का पर विजय के बाद आप ने हज़रत अम्र बिन आस रज़ि० को इसी महीने सुवाअ नामी बुत ढाने के लिए रवाना किया। यह मक्का से तीन मील की दूरी पर रहात में बनू हुज़ैल की एक मूर्ति थी, जब हज़रत अम्र रज़ि० वहां पहुंचे तो पुजारी ने पूछा, तुम क्या चाहते हो? उन्होंने कहा, मुझे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसे ढाने का हुक्म दिया है। उसने कहा तुम इस पर समर्थ नहीं हो सकते। हज़रत अम्र रज़ि० ने कहा, क्यों? उसने कहा (प्राकृतिक ढंग से) रोक दिए जाओगे। हज़रत अम्र रज़ि० ने कहा, तुम अब तक असत्य पर हो? तुम पर अफ़सोस! क्या यह सुनता या देखता है? इसके बाद मूर्ति के पास जा कर उसे तोड़ डाला और अपने साथियों को हुक्म दिया कि वे उसके ख़ज़ाने वाला मकान ढा दें, लेकिन उसमें कुछ न मिला, फिर पुजारी से कहा, कहो, कैसा रहा? उसने कहा, मैं अल्लाह के लिए इस्लाम लाया।[3]
इसी महीने ख़ालिद बिन वलीद द्वारा सरिय्या खालिद बिन वलीद (नख़ला) अभियान में मूर्ति अल-उज़्ज़ा को ध्वस्त कर दिया गया था।
इस्लामी शब्दावली में अरबी शब्द ग़ज़वा [4] इस्लाम के पैग़ंबर के उन अभियानों को कहते हैं जिन मुहिम या लड़ाईयों में उन्होंने शरीक होकर नेतृत्व किया,इसका बहुवचन है गज़वात, जिन मुहिम में किसी सहाबा को ज़िम्मेदार बनाकर भेजा और स्वयं नेतृत्व करते रहे उन अभियानों को सरियाह(सरिय्या) या सिरया कहते हैं, इसका बहुवचन सराया है।[5] [6]