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साँझी पूजा | |
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घरों की भित्ति-कुढयक पर देवी दुर्गा की आकृति जिसे "साँझी माता" कहते है। | |
अन्य नाम | सँझा पर्व, सँझया माई |
अनुयायी | हिन्दू |
उद्देश्य | धार्मिक निष्ठा, उत्सव |
उत्सव | देवी माँ की आकृति बनाना, आरती, भोज |
अनुष्ठान | देवी आराधना, पूजा एवं आरती; कन्या पूजन |
आरम्भ | प्रथम नवरात्रि |
तिथि | आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक |
समान पर्व | दुर्गा पूजा |
साँझी पर्व देवी पूजा का प्रमुख पर्व है जो मुख्यतः नवरात्रि में मनाया जाता है। कई स्थानों पर यह भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है।[1] हरियाणा, दिल्ली, कुरूप्रदेश, ब्रजप्रदेश, मालवा, निमाड़, राजस्थान, गुजरात तथा अन्य कई क्षेत्रों मनाये जाने वाला त्यौहार है। कई पर्व एक के उपरान्त आते है और सब स्थानों पर चमक-दमक व उत्साह छाया रहता है। पहले श्राद्ध पूजा, फिर नवरात्रि में साँझी पर्व का आरम्भ, साथ साथ में रामलीला प्रस्तुति, अन्त में भव्य झाँकियां और फिर दशहरे का पर्व। सोलह दिन के अन्त में अमावस्या को सँझा देवी को विदा किया जाता है।
घर के बाहर, किवाड़-द्वारों पर, भित्ति-कुढयक पर गाय के गोबर को लेकर लड़कियाँ विभिन्न कलाकृतियाँ बनाती हैं। सँझा देवी, उसकी बहन फूहङ और खोङा काना बामन के नाम की मुख्य आकृतियां बनाई जाती हैं। उन्हें हार, चूड़ियाँ, फूल पत्तों, मालीपन्ना सिन्दूर व रंग बिरंगे कपड़ों आदि से सजाया जाता है।
नियमित रूप से एकत्रित होकर संध्या समय उनका पूजन किया जाता है। घी का दीया जलाया जाता है। फिर देवी को गीत "सँझा माई जीमले, ना धापी तो ओर ले, धाप गी तो छोड़ दे" गाकर मीठे व्यञ्जनों का भोग लगाते है एवं उपस्थित सभी को प्रसाद वितरित करते हैं। फिर लोकगीत गाते है बाजे बजाते है और सभी बहुत नाचते है।
फिर कुछ भजन संगीत करने पर अन्त में आरती की जाती है। सभी दिन अलग-अलग घर की अलग-अलग प्रकार की प्रसाद सामग्री बांटने की बारी आती है। महिलाएँ बाल-बालिकायें सब में बहुत उत्साह देखने को मिलता है।
अन्त के पाँच दिनों में हाथी-घोड़े, किला-कोट, गाड़ी आदि की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। सोलहवें दिन अमावस्या को सँझा देवी को भीत से उतारकर मिट्टी के घड़े में बिठाया जाता है। उसके आगे तेल-घी का दीया जलाते हैं। फिर सभी मिलकर सँझा देवी को गीतों के साथ विदा करने जाते हैं। विसर्जन करने जाते समय पूरे पथ में सावधानी बरती जाती है यतः रीत है : नटखट लड़के घड़े को फोड़ने का यत्न करते रहेंगे, पर सभी लड़कियों को विसर्जन करने तक घड़े की रक्षा करनी होती है। पूरे पथ भर हँसी-ठिठोली, नाच, गीत किया जाता है। सँझा माई को विदा करने पर प्रसाद बाँटा जाता है।
लोक गीतों मे सँझा देवी के कुछ प्रमुख गीत है-