साजन का घर | |
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साजन का घर का पोस्टर | |
निर्देशक | सुरेंद्र कुमार बोहरा |
निर्माता |
सुनील बोहरा सुरेंद्र बोहरा फारूक नूतन |
अभिनेता |
ऋषि कपूर, जूही चावला, दीपक तिजोरी, अनुपम खेर, बिन्दू |
संगीतकार | नदीम श्रवण |
प्रदर्शन तिथियाँ |
28 अप्रैल, 1994 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
साजन का घर 1994 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्देशन सुरेंद्र कुमार बोहरा ने किया और मुख्य भूमिकाओं में ऋषि कपूर और जूही चावला है।[1] फिल्म व्यवसायिक रूप से सफल रही थी और इसे जूही चावला की सुपरहिट फिल्मों में गिना जाता है।[2]
धनराज (अनुपम खेर) एक गरीब और बहुत ही ज्यादा लालची इंसान रहता है। उसकी पत्नी एक बेटी, लक्ष्मी (जूही चावला) को जन्म देने के तुरंत बाद मर जाती है। वहीं उसके जन्म के साथ ही वो एक बहुत ही बड़ी लॉटरी भी जीत जाता है, और काफी अमीर हो जाता है। धनराज को लॉटरी जीतने के बावजूद भी ऐसा लगता है कि उसकी बेटी अशुभ या खराब किस्मत वाली है और उसके जन्म लेने के कारण ही उसकी पत्नी की मौत हुई है। वो सारा दोष उसकी बेटी, लक्ष्मी पर लगा देता है और उसे देखने से भी इंकार कर देता है। इसके बाद वो दूसरी शादी कर लेता है। उसके दूसरी बीवी से उसके घर एक पुत्र, सूरज (दीपक तिजोरी) का जन्म होता है।
लक्ष्मी और सूरज बड़े हो जाते हैं। इतने सालों बाद भी धनराज और उसकी सौतेली माँ उसे बुरी किस्मत वाली ही सोचते रहते हैं और उसके साथ बहुत खराब व्यवहार करते रहते हैं। सूरज इस बात से असहमत रहता है कि उसकी बहन बुरी किस्मत वाली है। वो जितना हो सकते, उतना अपनी बहन को उनसे बचाने की कोशिश करते रहता है। उसकी माँ सूरज को लक्ष्मी से दूर रहने बोलती है, लेकिन वो रक्षा बंधन के दिन उससे राखी बंधाने उसके पास चले जाता है। बाद में एक दुर्घटना में वो अपना एक हाथ खो देता है। उसकी माँ लक्ष्मी को ही इसका कारण मानती है।
लक्ष्मी के पिता और सौतेली माँ उसकी शादी सेना के एक अधिकारी, अमर (ऋषि कपूर) से तय कराते हैं। शादी होने के बाद धनराज की मौत हो जाती है और सारी संपत्ति भी चले जाती है। उनकी हालत इतनी खराब हो जाती है कि उन्हें बंगले से बाहर होना पड़ता है। इसी बीच लक्ष्मी का गर्भपात हो जाता है। अमर से डॉक्टर कहता है कि यदि लक्ष्मी माँ बनती है तो उसकी मौत हो जाएगी। किसी को दुःख न हो, इस कारण अमर ये बात किसी को नहीं बताता है।
अमर की माँ को लगता है कि अब लक्ष्मी को कोई बच्चा नहीं होगा और वो अब उसे रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगती है ताकि अमर की किसी और लड़की से शादी करा सके। लक्ष्मी एक दिन अमर को गर्भपात और उसके प्रभाव के बारे में बात करते हुए सुन लेती है। वो फैसला करती है कि चाहे वो मर भी जाये, लेकिन वो बच्चे को जन्म जरूर देगी। वो अमर को ताने मारती है और उत्तेजित करती है, जिससे अमर भूल जाता है कि उसकी बीवी गर्भवती होने पर मर जाएगी और वो उसके साथ रात गुजारता है। अगले दिन वो डर जाता है कि ये उसने क्या कर दिया, पर वो डॉक्टर से बात करना छोड़, काम पर चले जाता है। अमर के जाने के बाद उसकी माँ लक्ष्मी को घर से निकाल देती है। लक्ष्मी उस गाँव में ही इधर उधर काम कर अपना जीवन बिताते रहती है और एक बच्चे को जन्म देती है। बच्चे को जन्म देने के बाद वो उसे ससुराल ले जाती है और अपनी आखिरी सांस लेते समय ही अमर घर आता है। लक्ष्मी की मौत हो जाती है और परिवार वाले बस यही सोचते रह जाते हैं कि काश उन लोगों ने उसके साथ अच्छा व्यवहार किया होता। इसी के साथ कहानी समाप्त हो जाती है।
सभी गीत समीर द्वारा लिखित; सारा संगीत नदीम-श्रवण द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "अपनी भी जिंदगी में" | कुमार सानु, अलका याज्ञिक | 6:39 |
2. | "बाबुल दे दो दुआ" | सुरेश वाडकर, अलका याज्ञिक | 6:59 |
3. | "बोझ से ग़मों के" | अलका याज्ञनिक | 1:46 |
4. | "चाँदी की डोरी" | अलका याज्ञनिक | 2:26 |
5. | "दर्द सहेंगे कुछ न कहेंगे" | मनहर उधास, साधना सरगम | 5:15 |
6. | "मैं करती हूँ तुझे प्यार" | कुमार सानु, अलका याज्ञिक | 5:17 |
7. | "नज़र जिधर जिधर जाए" | कुमार सानु, अलका याज्ञिक | 5:11 |
8. | "रब ने भी मुझ पे सितम" | अलका याज्ञिक | 9:14 |
9. | "सावन आया बादल छाये" | साधना सरगम, कुमार सानु | 5:56 |