सुधा चन्द्रन हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री व नर्तकी हैं।[1] जिन्होंने दुनिया भर में अपने प्रतिभा और कला कौशल से लोगों का दिल जीता है। उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिससे उनके जीवन में एक नया मोड़ आ गया। जिसे हमेशा से नृत्य करने का शौक था। अचानक से सब कुछ बदल गया। लेकिन वह अपने दृढ़ संकल्प और विश्वास को कभी नहीं खोया। और उन्होंने अपने उस कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। जीवन के किसी भी क्षेत्र में शिखर तक पहुँचने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और कठिन परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है. कई लोग ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने अपने शारीरिक अक्षमता के बावजूद संघर्ष करके अपने लक्ष्य को हासिल किया है। ऐसा ही एक नाम है, अभिनेत्री सुधा चंद्रन जी का है। जिन्होंने एक हादसे में अपना एक पैर खराब होने के बावजूद भी वह आज एक सर्वश्रेठ नृत्यांगना के तौर पर अपने कला व अभिनय का प्रदर्शन कर रही है।
सुधा को बचपन से ही नृत्य में बहुत अधिक रूचि थी। उसके माता-पिता ने नृत्य के प्रति उसकी रूचि को देख कर उसको नृत्य में आगे बढ़ना चाहा। जिससे सुधा बड़ी होकर एक नृत्यांगना के रूप में अपना भविष्य बनाये। और उसके लिए उनके पिता श्री के. डी. चंद्रन जी तथा उनकी माता जी श्रीमती थंगम चंद्रन जी ने 5 वर्ष की एक छोटी सी आयु में ही सुधा को मुंबई के एक प्रख्यात विद्यालय ‘कला-सदन’ में प्रवेश दिलवाया। उनके स्वर्गीय पिता जी एक पूर्व अभिनेता के रूप में काम कर चुके हैं। तथा वह एक यूएसआईएस कंपनी में काम किया करते थे।
पहले-पहल तो नृत्य विद्यालय के शिक्षकों ने इतनी छोटी उम्र की बच्ची के दाखिले में हिचकिचाहट महसूस की। किंतु बाद में सुधा की प्रतिभा देखकर सुप्रसिद्ध नृत्य शिक्षक श्री के.एस. रामास्वामी भागवतार ने उसे शिष्या के रूप में स्वीकार कर लिया, और सुधा उनसे नियमित प्रशिक्षण प्राप्त करने लगी।
नृत्यांगना सुधा चंद्रन की जीवनी हिंदी में - Biography of Sudha Chandran in Hindi 7 Moral जल्द ही सुधा के नृत्य कार्यक्रम विद्यालय के आयोजनों में होने लगे। नृत्य के साथ-साथ अध्ययन में भी सुधा ने अपनी प्रतिभा दिखाई। वह अपने विद्यालय के 10वी परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया। लेकिन सुधा के स्वप्नों की इंद्रधनुषी दुनिया में एकाएक 2 मई, 1981 को अँधेरा छा गया।
2 मई को तिरूचिरापल्ली से मद्रास जाते समय उनकी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस दुर्घटना में सुधा के बाएँ पाँव की एड़ी टूट गई, और दायाँ पाँव बुरी तरह जख्मी हो गया। प्लास्टर लगने पर बायाँ पाँव तो ठीक हो गया। परन्तु दायीं टाँग में ‘गैंग्रीन’ (एक प्रकार का कैंसर) का संभावना दिखाई देने लगा।
ऐसे में डॉक्टरों के पास सुधा की दायीं टाँग काट देने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था। अंततः दुर्घटना के एक महीने बाद सुधा की दायीं टाँग घुटने के साढ़े सात इंच नीचे से काट दी गई। एक टाँग का कट जाना संभवतः किसी भी नृत्यांगना के जीवन का अंत ही होता है। लेकिन सुधा ने कभी भी हिम्मत नहीं छोड़ा।
सुधा ने लकड़ी के गुटके के पाँव और बैसाखियों के सहारे चलना शुरू कर दिया, और मुंबई आकर वह पुनः अपनी अध्ययन कार्य में जुट गयी। कुछ समय के बाद सुधा को एक अंग विशेषज्ञ डॉ के बारे में पता लगा। जिनके पास से इलाज के बाद बहुत सारे सुधा जैसे लोग को अच्छे परिणाम मिला था।
सुधा ने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सुप्रसिद्ध कृत्रिम अंग विशेषज्ञ डॉ. पी.सी. सेठी से मिली। उनका क्लिनिक जयपुर में स्थित था। डॉ. सेठी ने सुधा को आश्वस्त दिया। कि वह दुबारा सामान्य ढंग से चल सकेगी। डॉ से बातचीत के दौरान सुधा ने पूछा- “क्या मैं नाच सकूँगी?” डॉ. सेठी ने कहा-“क्यों नहीं, प्रयास करो तो सब कुछ संभव है”।
डॉ. सेठी ने सुधा के लिए एक विशेष प्रकार की टाँग बनाई जो एल्यूमिनियम की थी। और इसमें ऐसी व्यवस्था थी कि वह टाँग को आसानी से घुमा सकती थी। सुधा एक नए विश्वास के साथ मुंबई लौटी और उसने नृत्य का अभ्यास शुरू करना चाहा। किंतु इस प्रयास में कटी हुई टाँग से खून निकलने लगा।
कोई भी सामान्य व्यक्ति इस तरह की घटना के बाद दुबारा नाचने की हिम्मत कदापि नहीं करता। परन्तु सुधा साधारण मिट्टी की नहीं बनी थी। जल्दी ही उसने अपनी निराशा पर काबू प्राप्त किया और अपने नृत्य प्रशिक्षक को साथ लेकर डॉ. सेठी से पुनः मिलने गयी।
डॉ. सेठी ने सुधा के नृत्य प्रशिक्षक से नृत्य हेतु पाँवों की विभिन्न मुद्राओं को गंभीरता से देखा-परखा और एक नयी टाँग बनवाई, जो नृत्य की विशेष ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। टाँग लगाते समय डॉ. सेठी ने सुधा से कहा- “मैं जो कुछ कर सकता था। मैंने कर दिया, अब तुम्हारी बारी है”।
सुधा ने पुनः नृत्य का अभ्यास प्रारंभ किया। शुरुआती समय में सुधा को फिर से दिक्कतों का सामना करना पड़ा जिससे उनके कटे हुए पाँव के दूंठ से खून रिसने लगा किंतु सुधा ने कड़ा अभ्यास जारी रखा। कठिन अभ्यास से सुधा जल्द ही सामान्य नृत्य मुद्राओं को प्रदर्शित करने में सफल हो गई।
वर्ष | फ़िल्म | चरित्र | टिप्पणी |
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1984 | मयूरी | तेलुगु फिल्म | |
1986 | नाचे मयूरी | ||
2006 | शादी करके फँस गया यार | जज | |
2006 | मालामाल वीकली | ठकुराइन | |
1992 | शोला और शबनम | गोविंदा की बहन | |
2000 | तूने मेरा दिल ले लिया | ||
1999 | हम आपके दिल में रहते हैं | ||
1995 | रघुवीर | आरती वर्मा | |
1995 | मिलन | जया | |
1994 | बाली उमर को सलाम | ||
1994 | अंजाम | ||
1993 | फूलन हसीना रामकली | ||
1992 | इन्तेहा प्यार की | ||
1992 | इंसाफ की देवी | सीता एस प्रकाश | |
1992 | निश्चय | ||
1991 | जान पहचान | हेमा |