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श्री सूर्यनरायण स्वामी देवस्थान, अरसवल्ली | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | श्रीकाकुलम शहर |
ज़िला | श्रीकाकुलम जिला |
राज्य | आंध्र प्रदेश |
देश | भारत |
वास्तु विवरण | |
प्रकार | ऑंद्र (उडिसा) साम्प्रदाय |
निर्माता | इंद्र कलिंग राजा देवेंद्रवर्मा |
अभिलेख | 3 |
वेबसाइट | |
http://www.arasavallisungod.org |
प्रसिद्ध सूर्य देवता मंदिर -अरसावल्ली गाव से १ किमी पूर्व दिशा में श्रीकाकुलम जिले में स्थित है। यह मंदिर उत्तरी आंध्र प्रदेश के छोर पर है। यह एक प्राचीन मंदिर है जो सूर्य देवता के दो मंदिरो में से एक है। पद्म पुराण के अनुसार ऋषि कश्यप ने अयाह सूर्य देव की प्रतिमा स्थापित की थी। इसीलिए सूर्य कश्यप गोत्र के कहलाते हैं। सूर्य ग्रहो के राजा है। स्थल पुराणो के अनुसार देव इंद्र ने इस मंदिर की खोज की और यहाँ सूर्य देव को स्थापित किया इसलिए यहाँ भगवान सूर्यनारायण स्वामी वरु के नाम से भी जाने जाते है।[1]
हालांकि, मंदिर की अपनी किंवदंतियों, जिन्हें 'स्थलपुराण' के रूप में जाना जाता है, एक अलग मूल कहानी प्रस्तुत करती हैं। इस कथन के अनुसार, देवताओं के राजा, इंद्र देव ने एक बार द्वारपाल नंदी के निर्देशों की अवहेलना की और भगवान शिव के गर्भगृह में एक अशुभ समय में घुसने की कोशिश की। नंदी ने अपने कर्तव्य को पूरा करते हुए घुसपैठिए को लात मारकर पवित्र स्थान की रक्षा की।
कहा जाता है कि इस घटना ने सूर्य को क्रोधित कर दिया, जिसने इंद्र को अंधा कर दिया। अपनी दृष्टि वापस पाने के लिए, इंद्र को सूर्य को प्रसन्न करना पड़ा, मूर्ति स्थापित करनी पड़ी और अरसवल्ली में उनकी पूजा करनी पड़ी। यह वैकल्पिक कहानी एक ही परिसर में शिव मंदिर के साथ सूर्य देव मंदिर की उपस्थिति की व्याख्या करती है।[2]
ओडिशा के श्रीकाकुलम जिले में स्थित अरसवल्ली सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति उनकी दोनों पत्नियों, उषा और छाया के साथ स्थापित है। यह मंदिर 7वीं शताब्दी में कलिंग साम्राज्य के शासक देवेंद्र वर्मा ने बनवाया था। मंदिर में मौजूद पत्थर के शिलालेखों से पता चलता है कि राजा देवेंद्र वर्मा ने यहां वैदिक विद्यार्थियों के लिए स्कूल बनवाने के लिए भी जमीन दान की थी।
मंदिर में पंचदेवों की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इस कारण सौर, शैव, शाक्त, वैष्णव और गाणपत्य संप्रदाय के लोगों के लिए भी यह मंदिर खास है।
अरसवल्ली सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य की 5 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति का मुकुट शेषनाग के फन का बना हुआ है। मूर्ति के साथ उनकी दोनों पत्नियों, उषा और छाया की मूर्तियां भी हैं। मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में कलिंग साम्राज्य के शासक देवेंद्र वर्मा ने करवाया था। मंदिर में मौजूद पत्थर के शिलालेखों से पता चलता है कि राजा देवेंद्र वर्मा ने यहां वैदिक विद्यार्थियों के लिए स्कूल बनवाने के लिए भी जमीन दान की थी।
मंदिर में पंचदेवों की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इस कारण यह मंदिर सौर, शैव, शाक्त, वैष्णव और गाणपत्य संप्रदाय के लोगों के लिए भी खास है। मंदिर में भगवान सूर्य के अलावा भगवान विष्णु, गणेश, शिव और देवी दुर्गा की मूर्तियां भी हैं।[3]
इस मंदिर का निर्माण इस तरह किया गया है ताकि प्रातः काल सूर्य की किरणे भगवान के चरणो में साल में दो बार (मार्च और सितम्बर) में पड़े। यह किरणे ५ मुख्य द्वारो से होकर देव के चरणो तक पहुंचती हैं।[1]