बीसवीं शताब्दी में सेना द्वारा विज्ञान के वित्तपोषण ने वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में अनेकों प्रभाव देखने को मिले। विशेष रूप से प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात से यह माना जाने लगा है कि सफल सेना के लिए विज्ञान पर आधारित उन्नत प्रौद्योगिकी अत्यावश्यक है।
प्रथम विश्वयुद्ध को प्रायः 'रसायनज्ञों का युद्ध' (chemists’ war) कहा गया है क्योंकि इसमें विषाक्त गैसों का बहुतायत में प्रयोग हुआ तथा नाइट्रेट व अन्य उन्नत विस्फोटकों का विशेष महत्व रहा।
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