सन् 1972 में फर्गस आईएम क्रेक और रॉबर्ट एस लॉकहार्ट द्वारा बनाया यह स्तर-प्रक्रमण-संसाधन सिद्धांत, मानसिक प्रसंस्करण की गहराई के एक कार्य के रूप में उत्तेजनाओं की स्मृतियों को वर्णित करता है। कम स्तर के प्रसंस्करण की तुलना में अधिक विश्लेषण से अधिक विस्तृत और मजबूत स्मृति प्राप्त होती है। इस मॉडल में प्रसंस्करण के तीन स्तर हैं। जब हम शब्द की केवल भौतिक गुणवत्ता को याद रखते हैं तो उसे संरचनात्मक अथवा दार्शनिक प्रसंस्करण कहते हैं। उदाहरणार्थ : हम कभी-कभार शब्द की वर्तनी कैसे है और उसके अक्षर कैसे दिखते हैं, मात्र इतना ही याद रख पाते हैं। ध्वन्यात्मक प्रसंस्करण में शब्द को उसके उच्चारण के आधार पर याद रखा जाता है। उदाहरण के लिए, शब्द 'नाम' का 'काम' से तुक बनता है। अंत में, हमारे पास अर्थ प्रसंस्करण है जिसमें हम एक शब्द के अर्थ को किसी ऐसे अन्य शब्द के साथ जोड़ते हैं जिसका अर्थ हमारे शब्द से मिलता-जलता हो। उदाहरण के तौर पर हम 'भोर' इस शब्द को 'प्रातःकाल' के साथ जोड़ सकते हैं क्योंकि दोनो का ही अर्थ सुबह ही है। यदि एक बार कोई शब्द समझ में आ जाए तो मस्तिष्क उसके गहन प्रसंस्करण की अनुमति देता है।
यह सिद्धांत एटकिंसन और शिफरीन के स्मृतितंत्र का खंडन करता है जो स्मरणशक्ति को निरंतर परिवर्तनशील बताता है तथा यह मान लेता है कि पूर्वाभ्यास हमेशा दीर्घकालिक स्मृति में सुधार करता है। एटकिंसन और शिफरीन के विपरीत, इस सिद्धांत के अनुसार पूर्वाभ्यास, जिसमें केवल पिछले विश्लेषणों को दोहराना शामिल है (रखरखाव पूर्वाभ्यास), दीर्घकालिक स्मृति को नहीं बढ़ा सकता। [1]