स्थानान्तरी कृषि अथवा स्थानान्तरणीय कृषि जीविका कृषि का एक प्रकार है जिसमें कोई भूमि का टुकड़ा कुछ समय तक फसल लेने के लिए चुना जाता है और उर्वरता समाप्ति के बाद इसका परित्याग कर दूसरे टुकड़े को ऐसी ही कृषि के लिए चुन लिया जाता है। पहले चुने गए टुकड़े पर वापस प्राकृतिक वनस्पति का विकास होता है। आम तौर पर १० से १२ वर्ष, और कभी कभी ४०-५० की अवधि में जमीन का पहला टुकड़ा प्राकृतिक वनस्पति से पुनः आच्छादित हो कर सफाई और कृषि के लिए उपयुक्त हो जाता है।[1]
यह कृषि अमेज़न बेसिन के सघन वन्य क्षेत्रों, उष्ण कटिबन्धीय अफ़्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वोत्तर भारत में प्रचलित है। ये भारी वर्षा और वनस्पति के तीव्र पुनर्जनन वाले क्षेत्र हैं।
कर्तन एवं दहन कृषि भी एक प्रकार की स्थानान्तरी कृषि ही है। इसके पर्यावरणीय प्रभावों को देखते हुए भारत के कुछ अंचलों में इस पर प्रतिबन्ध भी लगाया किया गया है।[2]
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