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स्वामी हरिदास (1480-1575) भक्त कवि[1], शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है। वे वैष्णव भक्त थे तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे। वे प्राचीन शास्त्रीय संगीत के अद्भुत विद्वान एवम् चतुष् ध्रुपदशैली के रचयिता हैं। प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके शिष्य थे। अकबर इनके दर्शन करने वृन्दावन गए थे। ‘केलिमाल’ में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं। इनकी वाणी सरस और भावुक है।
स्वामी हरिदास का जन्म 1478 में हुआ था। इनके जन्म स्थान और गुरु के विषय में कई मत प्रचलित हैं। राजपुर ग्राम , वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) इनका जन्म स्थान माना जाता है।इनका जन्म समय कुछ ज्ञात नहीं है।
ये महात्मा वृन्दावन में सखी संप्रदाय के संस्थापक थे और अकबर के समय में एक सिद्ध भक्त और संगीत-कला-कोविद माने जाते थे। कविताकाल सन् 1543 से 1560 ई. ठहरता है। प्रसिद्ध गायनाचार्य तानसेन इनका गुरूवत् सम्मान करते थे।
यह प्रसिद्ध है कि अकबर बादशाह साधु के वेश में तानसेन के साथ इनका गाना सुनने के लिए गया था। कहते हैं कि तानसेन इनके सामने गाने लगे और उन्होंने जानबूझकर गाने में कुछ भूल कर दी। इसपर स्वामी हरिदास ने उसी गाना को शुद्ध करके गाया। इस युक्ति से अकबर को इनका गाना सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। पीछे अकबर ने बहुत कुछ पूजा चढ़ानी चाही पर इन्होंने स्वीकार नहीं की।
निम्बार्क सखी संप्रदाय एवं स्वामी हरिदास परंपरा के अंतर्गत एक स्थान पश्चिम बंगाल राज्य में कोलकाता के 14, ऑर्फनगंज रोड, कोलकाता - 700 023, थाना - वाटगंज [1] के क्षेत्र में (कोलकाता नगर निगम का वार्ड संख्या 74) भी है जिसे "श्री राधा कृष्ण भजन आश्रम" के नाम से वृन्दावन के निम्बार्क टाटिया स्थान, ललित कुञ्ज से दीक्षित विरक्त हरिदासीय संत श्री स्वामी श्री श्री 1008 श्री श्याम चरण दास जी महाराज ने सन 1953 में स्थापित किया था। माना जाता है कि हरिदासीय परंपरा का यह आश्रम पश्चिम बंगाल के राज्य में और कहीं नहीं है। पश्चिम बंगाल में इस परंपरा से सम्बंधित यह एकमात्र स्थान है।
माना जाता है कि स्वामी हरिदास जी की यह परंपरा लगभग 543 वर्षों पुराना है। जिनमें श्री स्वामी हरिदास जी महाराज ने श्रीधाम वृन्दावन में भगवान बांकेबिहारी जी को प्रकट किया था। स्वामी श्याम चरण दास जी इन्हीं की परंपरा के 18 वीं पीढ़ी के महंत श्री राधा चरण दास जी महाराज, टाटिया स्थान श्रीधाम वृन्दावन के परम कृपापात्र शिष्य थे। स्वामी श्याम चरण दास जी एक विरक्त संत थे व उनके गुरु श्री राधा चरण दास जी के ही आज्ञा से उन्होंने कोलकाता स्थित इस दिव्य एवं भव्य स्थान की स्थापना की थी।
स्वामी श्री वृन्दावन दास जी को इस स्थान का परंपरागत महंत तथा आधिकारिक रूप से संरक्षक / उत्तराधिकारी का जिम्मेदारी सौंपते हुए भजनाश्रम का जीर्णोद्धार तथा देखरेख हेतु, उनके गुरु तथा श्री हरिदास रसोपासना पीठ के वर्त्तमान पीठाधीश्वर, आचार्य महामंडलेश्वर श्री स्वामी राधा प्रदाद देवजूं महाराज द्वारा वर्ष 2013 में अप्रैल महीने के दिनांक 7 को औपचारिक घोषणा कर दिया गया। श्री स्वामी राधा प्रदाद देवजूं महाराज जी भी स्वामी श्याम चरण दास जी के गुरु श्री राधा चरण दास जी के कृपापात्र शिष्य हैं तथा उन्हीं के आज्ञा से वे आज ललित कुंज के हरिदाससीय रसोपासना पीठ के पीठाधीश्वर के गद्दी पर कई वर्षों से विराजमान हैं। क्योंकि वर्त्तमान में इस हरिदासीय परंपरा के सर्वोच्च पद पर स्वामी श्री राधा प्रसाद देवजूं पीठाधीस्वर के रूप में सुशोभित हैं तो वे ही इस स्थान का अगला जिम्मेदारी निर्धारित करने का परंपरागत अधिकारी हुए अतएव उन्होंने ही इस परंपरा से दीक्षित विरक्त संत स्वामी श्री वृन्दावन दास जी को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी थी।
जिस वृन्दावन को वैकुण्ठ से भी ऊपर माना गया है, क्योंकि उस वैकुण्ठ को भी त्याग कर नारायण इस वृन्दावन में आये और लीला किये, जिस स्थान और लीला का दर्शन पाने हेतु भगवान् शिव भागे चले जाते हैं, वो है व्रज। व्रज की तो महिमा को कई दिनों तक कहते रह जाने के बाद भी पूरा नहीं किया जा सकता, कि व्रज क्या है? भगवन शिव ने पार्वती को पद्म पुराण में यह बताया है कि सभी सप्तपुरियों में ये धाम सबसे ऊपर है, श्रेष्ठ है, न्यारी है। उसी श्रीधाम वृन्दावन के धाम व परंपरा से वे दोनों (स्वामी श्री वृन्दावन दास और स्वामी श्री श्याम चरण दास जी) दीक्षित हैं।
अनन्य नृपति रसिक शिरमोमणि स्वामी श्री हरिदास जी महाराज ने रस की उपासना कर बिहारी जी को प्रकट किया था, जो वर्त्तमान के मुख्यमन्दिर में विराजमान है, वो मानव निर्मित नहीं है। मुख्यमन्दिर में विराजमान बिहारी जी के विग्रह के बगल में राधारानी के स्थान पर स्वामीजी के प्रतिमा को बैठाया गया है।
श्रीधाम वृन्दावन, ललित कुञ्ज के वर्तमान पीठाधीश्वर
श्रीधाम वृन्दावन के वर्त्तमान पीठाधीश्वर, बड़े महाराज जी, श्री राधा प्रसाद देवजी जी से दीक्षित हुए तो इस धाम के परंपरा के अनुसार वे ही स्वामी वृन्दावन दास महाराज के पिता बन गए। राधा चरण दास जी महाराज से स्वामी श्री श्याम चरण दास जी महाराज दीक्षित हुए थे तो परंपरागत वे ही उनके पिता हुए। जिन बातों को समझते हुए वृन्दावन दास स्वयं इस स्थान पर आने के बाद स्वामीजी (श्री राधा प्रसाद देवजूं महाराज) से संपर्क कर यहाँ का कार्यभार वर्ष 2013 से सम्हाला। श्रीधाम वृन्दावन धाम के पीठाधीश्वर स्वामीजी (श्री राधा प्रसाद देवजूं महाराज) वर्ष में एक-दो बार वर्षों से यहाँ आते रहे हैं इसलिए उन से ही संपर्क कर इस स्थान का जीर्णोद्धार और देखभाल की जिम्मेदारी परंपरागत प्रणाली में ली गयी।
स्वामी वृन्दावन दास जी महाराज के प्रयासों के बाद से उस स्थान का चमकदमक ही बदल गया है आज। आज वो स्थल लाखों में एक है। परन्तु अब उस स्थान पर कुछ भूमाफिआओं का कुदृष्टि है अतः संत समाज, मदिर, देवालय, आश्रम की रक्षा थोड़ा चिंता का विषय बन चूका है। उस स्थान का नाम बदल कर उसके ऊपर किसी अन्य लोगों ने हथियाने का सारा षड़यंत्र कर रखा है तो उसको वापस अपने परंपरागत अवस्था में लाना थोड़ा कठिन हो गया है।