हिंद महासागर तटीय क्षेत्रीय सहयोग संघ

हिन्द महासागर तटीय सहयोग संघ
Indian Ocean Rim Association (IORA)
मुख्यालयएबीन साइबर सिटी, मॉरीशस
अधिकारीक भाषा
प्रकारअन्तरसरकारी संगठन
सदस्य
नेता
• महासचिव
भारत के. वी भागीरथ[1]
• अध्यक्ष
 इंडोनेशिया (2016-2018)[2]
• उपाध्यक्ष
 आस्ट्रेलिया (2016-2018)[3]
स्थापित
• 6 मार्च 1997
क्षेत्रीय सहयोग के लिए हिँद महासागर संध
समय मंडलUTC+2 to +10.5
वेबसाइट
iora.net

हिन्द महासागर तटीय सहयोग संघ (Indian Ocean Rim Association) यह संघ क्षेत्रीय सहयोग और अन्तरमहाद्वीपीय व्यापार में तेजी लाने के उद्देश्य से हिन्द महासागर के तीन प्रायद्वीपों- एशिया, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया को एक मंच पर लाता है।

उत्पति एवं विकास

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हिन्द महासागर तटीय क्षेत्रीय सहयोग संगठन (हिमतक्षेस) 5 मार्च, 1997 को पोर्ट लुईस मॉरीशस में अस्तित्व में आया। इस संगठन के 14 संस्थापक सदस्य देश थे- भारत, आस्ट्रेलिया, मलेशिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका, सिंगापुर, ओमान, यमन, तंजानिया, केन्या, मोजाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका और मॉरीशसबांग्लादेश, ईरान, सेशेल्स, थाईलैंड और संयुक्त अरब अमीरात को 1999 में इसकी सदस्यता प्रदान की गई।

हिमतक्षेस नवीनतम और संभवत

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अन्तिम महत्वपूर्ण क्षेत्रीय आर्थिक संगठन है। शीतयुद्ध की समाप्ति के साथ क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग एवं एकीकरण बढ़ते महत्व के सन्दर्भ में इस संगठन के औचित्य को स्थापित किया जा सकता है। हिन्द महासागर, जो ऐतिहासिक काल से व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र रहा है, मात्र एक ही ऐसा क्षेत्र शेष रह गया था जहाँ आसियान, नाफ्टा और एपेक जैसे किसी आर्थिक संगठन का गठन नहीं हुआ था हिमतक्षेस क्षेत्र में विश्व की लगभग एक-तिहाई जनसंख्या निवास करती है। विश्व के दो-तिहाई कच्चे तेल, एक-तिहाई प्राकृतिक गैस, 40 प्रतिशत सोने, 90 प्रतिशत हीरे और 60 प्रतिशत यूरेनियम के भंडार इसी क्षेत्र में हैं। अपनी भौगोलिक स्थिति और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण जलमार्गों की उपस्थिति के कारण वस्तुओं का सर्वाधिक आवागमन हिन्द महासागर से ही होता है। हिन्द महासागर तट पर अवस्थित कोई भी देश हिमतक्षेस का सदस्य बन सकता है, बशर्ते कि वह इसके सिद्धान्तों और उद्देश्यों, जैसे- सदस्य देशों के आन्तरिक मामलों में अहस्तक्षेप, शान्तिपूर्ण सह- अस्तित्व, समानता और सदस्यों को विशिष्ट राष्ट्र (एमएफएन) का दर्जा-से सहमत हो।

हिमतक्षेस खुले क्षेत्रवाद के सिद्धान्त पर आधारित हिंद महासागर के तटीय देशों का एक क्षेत्रीय सहयोग संगठन है। खुले क्षेत्रवाद के सिद्धान्त का तात्पर्य है कि संगठन द्वारा गैर- सदस्य देशों के साथ व्यापार सुविधाओं में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। दूसरे शब्दों में गैर-खाद्य देशों को भी वही व्यापारिक छूटें प्राप्त होगी जो सदस्य देशों को प्राप्त हैं। इस सिद्धान्त को सबसे पहले 1989 में एशिया-पैसिफिक संगठन द्वारा स्वीकार किया गया था। विश्व व्यापार संगठन भी खुले क्षेत्रवाद के सिद्धान्त पर आधारित है। वास्तव में खुले क्षेत्रवाद के सिद्धान्त के आधार पर ही विश्व व्यापार के उदारीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है इसके विपरीत बन्द क्षेत्रवाद में किसी संगठन के सदस्य देशों द्वारा अपने सदस्यों को जो व्यापार सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, वे सुविधाएँ गैर-सदस्य देशों को प्राप्त नहीं होती हैं हिमतक्षेस हिन्द महासागर के तटीय देशों का संगठन है। इस संगठन का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि हिन्द महासागर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा समुद्र है विश्व के आधे व्यापारिक जहाज, विश्व व्यापार की एक-तिहाई वस्तुएँ तथा विश्व का दो- तिहाई तेल यातायात हिन्द महासागर क्षेत्र से ही होता है। हिन्द महासागर समुद्री संसाधनों तथा खनिज पदार्थों की उपलब्धता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। विश्व खाद्य व ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से इसके जैविक व अजैविक संसाधनों का विशेष महत्व है। हिंद महासागर का सामरिक महत्व भी कम महत्वपूर्ण नहीं है हिन्द महासागर पर प्रभावी नियन्त्रण के बिना कोई देश वैश्विक शक्ति का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकता भारत के लिए हिन्द महासागर का हिमतक्षेस का विशेष महत्व है भारत तीन ओर से हिन्द महासागर से घिरा हुआ है। भारत का लगभग सारा विश्व व्यापार हिन्द महासागर से ही गुजरता है सुरक्षा की दृष्टि से भी हिन्द महासागर भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। गत दशक में चीन द्वारा हिन्द महासागर में ही मोतियों की माला के अन्तर्गत भारत को घेरने की कोशिश की गई थी। इसके अन्तर्गत चीन और भारत के चारों ओर स्थित पड़ोसी देशों में नौसैनिक अड्डों की सुविधाएँ प्राप्त करने का प्रयास किया था। हिन्द महासागर भारत के लिए तेल तथा गैस व अन्य खनिज पदार्थों व जैविक संसाधनों का स्रोत है।

हिमतक्षेस चार्टर

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हिमतक्षेस का चार्टर भी 1997 में स्वीकार किया गया था जिसमें इसके उद्देश्यों व सिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है। इसके उद्देश्यों में शामिल हैं-

1. हिन्द महासागर क्षेत्र व इसके देशों का जीवन्त व संतुलित विकास करना तथा क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक साझा मंच तैयार करना;

2. उन क्षेत्रों में सदस्य देशों के मध्य सहयोग को प्रोत्साहित करना जिनमें सदस्य देशों का अधिकतम साझा हित निहित हो। इस दृष्टि से हिमतक्षेस द्वारा व्यापार तथा निवेश, तकनीकी हस्तान्तरण, पर्यटन, ढाँचागत सुविधाओं का विकास तथा मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में कई विकास कार्यक्रमों को तैयार कर लागू करना।

3. आपसी लाभ की दृष्टि से सहयोग के अन्य क्षेत्रों को चिन्हित करना।

4. सदस्य देशों के मध्य व्यापार को बढ़ावा देने के लिए व्यापार उदारीकरण की नीतियों को अपनाना व उन्हें लागू करना।

5. सदस्य देशों के व्यापारिक समूहों, शैक्षणिक संस्थाओं तथा विद्वानों एवं जनता के मध्य अन्तः क्रिया को प्रोत्साहित करना।

6. विभिन्न वैश्विक मंचों में समान दृष्टिकोण अपनाने की दृष्टि से सदस्य देशों के मध्य विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श को प्रोत्साहित करना।

7. सदस्य देशों की संस्थाओं के मध्य संपर्क व सहयोग के मध्य से क्षेत्र के मानव संसाधनों के विकास का प्रयास करना।

8. सदस्य देशों में कई बदलाव देखने को मिलते है।

हिमतक्षेस के सिद्धान्त

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  • हिमतक्षेस के सिद्धान्त सहमति पर आधारित आपसी लाभकारी सहयोग में विश्वास।
  • यह सहयोग संप्रभुता, देशों की समानता तथा आन्तरिक मामलों में अहस्तक्षेप के सिद्धान्तों पर आधारित

होगा।

  • संगठन की सदस्यता उन सभी देशों के लिए खुली होगी जो इसके उद्देश्यों व सिद्धान्तों में विश्वास करते हैं।
  • हिमतक्षेस खुले क्षेत्रवाद के सिद्धान्त पर आधारित है,

जिसका प्रोत्साहन विश्व व्यापार संगठन द्वारा भी किया जाता है।

  • हिमतक्षेस के सभी निर्णय आम सहमति के आधार पर

लिए जाएँगे।

  • क्षेत्रीय विवादस्पद मुद्दों को हिमतक्षेस की परिधि से बाहर रखा जाएगा।
  • संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सभी सदस्य देश गम्भीरता से प्रयास करेंगे तथा इसके उद्देश्यों के विरुद्ध आचरण नहीं करेंगे।
  • सहयोग कार्यक्रमों का क्रियान्वयन सदस्य देशों द्वारा स्वैच्छिक आधार पर किया जाएगा।

उद्देश्य

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इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य हैं: विकासात्मक, तटस्थतापूर्ण और आम राय-आधारित पंचशील सिद्धान्त को अपनाते हुये क्षेत्रीय सहयोग और अन्तरमहाद्वीपीय व्यापार में वृद्धि लाना।

मन्त्रिपरिषद और वरिष्ठ मन्त्री समिति हिमतक्षेस के दो प्रमुख अंग हैं। मन्त्रिपरिषद की बैठक प्रत्येक दो वर्ष के अन्तराल पर होती है। इस बैठक के उद्देश्य होते हैं-

  • नीतियों का निर्धारण करना, प्रगति की समीक्षा करना तथा सहयोग के नये क्षेत्रों के सम्बन्ध में निर्णय लेना।
  • आर्थिक सहयोग की प्राथमिकताओं के निर्धारण,

विभिन्न कार्यक्रमों में समन्वय और वित्तीय संसाधनों के संघटन के लिए वरिष्ठ अधिकारी समिति की बैठक कभी भी और कितनी बार भी हो सकती है। अति अफसरशाही से बचने तथा नीतिगत निर्णयों के बेहतर समन्वयन, पर्यवेक्षण और क्रियान्वयन के लिये मॉरीशस में सचिवालय के स्थान एक पायलट संरचना गठित की गई है। अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु हिमतक्षेस द्वारा एक त्रिस्तरीय ढाँचे की स्थापना की गई है। इसमें प्रथम सरकारी संगठन, दूसरा शैक्षणिक समुदाय और तीसरा ढाँचा व्यापारिक समूहों का है। इन ढाँचों के माध्यम से हिमतक्षेस में विचार-विमर्श तथा आदान-प्रदान की प्रक्रिया को व्यापक बनाने का प्रयास किया गया है। विदेश मन्त्रियों के सम्मेलन के दौरान ही हिमतक्षेस के तीनों समूहों की नियमित बैठकें की जाती हैं। विदेश मन्त्रियों का सम्मेलन ही हिमतक्षेस की सर्वोच्च निर्णयकारी संस्था है।

गतिविधियाँ

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हिन्द महासागर तटीय सदस्य देशों में आर्थिक सहयोग, विशेषकर उन क्षेत्रों में, जो सामूहिक हितों और पारस्परिक लाभों की विकसित करने के अधिकतम अवसर प्रदान करते हैं, को संभालकर रखना हिमतक्षेस का अनन्य उद्देश्य है। ऐसे कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं-निवेश- प्रोत्साहन, वैज्ञानिक और तकनीकी आदान- प्रदान पर्यटन और मानव संसाधन और मौलिक आर्थिक ढाँचे का विकास और भेदभाव रहित आधार पर लोगों और सेवा संभरकों को आवागमन। हिमतक्षेस सदस्य देशों के बीच आर्थिक एकीकरण स्थापित करने से कहीं अधिक महत्व आर्थिक सहयोग को देता है। इस संगठन के संविधान के अन्तर्गत द्वि-पक्षीय और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा का प्रावधान नहीं है, क्योंकि इनसे आर्थिक सहयोग बाधित होता है।

गतिविधियाँ इस प्रकार है

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1997 में आयोजित अपनी पहली बैठक में हिमतक्षेस ने एक दस-सूत्री कार्य योजना को स्वीकृति प्रदान की जिसमें कार्यक्रम थे- मानकों और प्रत्यायनों में सहयोग; हिन्द महासागर तटीय व्यापार केन्द्र (आईओआरबीसी) और इण्टरनेट पर हिन्द महासागर तटीय वेबसाइट की स्थापना निवेश का सरलीकरण व्यापार कार्यक्रमों को प्रोन्नति; 1999 में हिन्द महासागर तटीय व्यापार मेले का आयोजन, और क्षेत्र के तकनीकी स्तर में सुधार। मापुतो (मोजाम्बीक) में आयोजित मन्त्रिपरिषद की एक बैठक में व्यापार एवं निवेश कार्य योजना नीति को विकसित करने की अनुशंसा को स्वीकृति दी गई इस नीति का प्रमुख उद्देश्य है- हिमतक्षेस देशों के बीच व्यापार उदारीकरण, व्यापार सरलीकरण और आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग। हिमतक्षेस की 11वीं व 12वीं मंत्रिपरिषद वेठकें,सम्मेलन क्रमशः 2011 व 2012 में भारत के बंगलुरू व गुरुग्राम नगरों में आयोजित की गई थीं। 11वीं बैठक इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि इसमें हिमतक्षेस के सहयोग के 6 प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को चिन्हित किया गया था। ये क्षेत्र हैं- समुद्री सुरक्षा, व्यापार तथा निवेश का उदारीकरण, मत्स्य उत्पादन का प्रबन्धन, आपदा प्रबन्धन, विज्ञान, तकनीकी व शैक्षणिक सहयोग। पर्यटन व सांस्कृतिक आदान-प्रदान। हिमतक्षेस की 12वीं बैठक में 21 बिन्दुओं पर एक घोषणा-पत्र जारी किया गया, जिसमें आपसी सहयोग के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया। इस घोषणा-पत्र में इस बात को रेखांकित किया गया कि हिन्द महासागर क्षेत्र में स्थित राष्ट्रों के लिए हिमतक्षेस एक बहुपक्षीय शीर्ष मंच है। इसमें हिमतक्षेस की विभिन्न संस्थाओं को मजबूत बनाने पर विशेष बल दिया गया है सदस्य देशों ने इस बैठक में यह निर्णय लिया कि हिन्द महासागर में संचार व व्यापार की सुरक्षा के लिए समुद्री डकैती को समाप्त करने के लिए आपसी सहयोग की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि हिन्द महासागर में मलक्का की खाड़ी तथा अदन की खाड़ी के पास समुद्री डकैती की घटनाएँ हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी हैं। समुद्री डाकैती के कारण इस क्षेत्र में व्यापारिक वस्तुओं का आवागमन भी प्रभावित हुआ है सदस्य राष्ट्रों ने व्यापार के क्षेत्र में सहयोग को आगे बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की हिमतक्षेस का यह भी प्रयास होगा कि उसके जो सदस्य देश तेजी से विकास कर रहे हैं, उनकी क्षमताओं तथा विकास का लाभ अन्य सदस्य देशों को भी प्राप्त हो सके। इस बैठक के दौरान प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए एक विशेष कोष की स्थापना की गई है। घोषणा में कहा गया कि इस विशेष कोष की धनराशि को सहयोग कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में प्रभावी ढंग से प्रयुक्त किया जाए। उल्लेखनीय है कि इस सम्मेलन में सदस्य देशों ने निर्णय लिया कि कैमरोस को हिमतक्षेस के 20वें सदस्य के तौर पर सदस्यता प्रदान की जाए। इसी तरह अमेरिका को हिमतक्षेस के छठवें वार्ताकार देश के रूप में शामिल किया जाए। विदेश मंत्रियों का 13वाँ सम्मेलन 1 नवम्बर, 2013 को ऑस्ट्रेलिया के शहर पर्थ में आयोजित किया गया था। इस बैठक में एक 25 बिन्दुओं वाला संयुक्त घोषणा-पत्र स्वीकार किया गया था, जिसे पर्थ घोषणा के नाम से जाना जाता है इस बैठक द्वारा संगठन के नए नाम की पुष्टि की गई। पहले इसका नाम इण्डियन ओसन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल को- ऑपरेशन -OIRAKKC था। इसका नया नाम बदलकर इण्डियन ओपन रिम एसोसिएशन कर दिया गया है। इसमें सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र के टिकाऊ तथा संतुलित विकास को आगे बढ़ाने में सहयोग को मजबूत करने पर बल दिया गया। इस क्षेत्र की विकासात्मक तथा सुरक्षा सम्बन्धी चुनौतियों के समाधान हेतु सदस्य देशों के मध्य नीति सम्बन्धी समन्वय को मजबूत करने का आह्वान भी किया गया। सम्मेलन में माना गया कि हिन्द महासागर का यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अधिक संवेदनशील है, अतः आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में सदस्य देशों के मध्य अधिक सहयोग की आवश्यकता है। बैठक में सदस्य देश इस बात पर सहमत हुए कि वे सीमा शुल्क प्रक्रिया तथा अन्य व्यापार संवर्द्धन उपायों के द्वारा इस क्षेत्र में व्यापार तथा निवेश को प्रोत्साहित करने का प्रयास करेंगे। इस, उद्देश्य की पूर्ति हेतु निजी क्षेत्र की भूमिका को भी मजबूत किया जाएगा। इस दृष्टि से ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा तथा आधारभूत ढाँचे के सम्बन्ध में निजी क्षेत्र के अनुकूल नीतियों को अपनाया जाएगा। सभी सदस्यों ने हिन्द महासागर के समुद्री संसाधनों के उत्पादक, टिकाऊ तथा शान्तिपूर्ण उपयोग व दोहन हेतु अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। उल्लेखनीय है कि इस सम्मेलन में समुद्री संसाधनों के दोहन के लिए अलग से कतिपय मार्गदर्शक सिद्धान्तों को अपनाया गया। सदस्य देशों ने कुछ अन्य क्षेत्रों जैसे- शिक्षा, संस्कृति, महिला सशक्तीकरण, शोध तथा मानव क्षमता विकास के क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।

सन्दर्भ

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  1. "Secretary-General". Indian Ocean Rim Association. Archived from the original on 17 जुलाई 2014. Retrieved 11 August 2014.
  2. "Chair". Archived from the original on 29 दिसंबर 2016. Retrieved 16 फ़रवरी 2017. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  3. "Vice Chair". Archived from the original on 5 फ़रवरी 2017. Retrieved 16 फ़रवरी 2017.