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चित्र:Logo hinduja1.gif | |
कंपनी प्रकार | Private |
---|---|
उद्योग | Conglomerate |
स्थापित | 1914 |
स्थापक | Parmanand Hinduja |
मुख्यालय | London, UK |
प्रमुख लोग | S P Hinduja (Chairman) |
उत्पाद | Automotive, Banking, ITES, Commercial Vehicles, Lubricants and several others. |
कर्मचारियों की संख्या | 40,000+ |
सहायक | Several. |
वेबसाइट | Official Website |
हिंदुजा समूह के मालिक श्रीचंद हिंदुजा और उनके भाई गोपीचंद हिंदुजा हैं, जिन्हें संक्षेप में हिंदुजा भाइयों के रूप में जाना जाता है। इसकी स्थापना परमानंद दीपचंद हिंदुजा ने सन् 1914 में की थी, जिसकी शुरुआत मुंबई तथा भारत में हुई; और सन् 1919 में इसका पहला अंतर्राष्ट्रीय परिचालन ईरान में शुरू किया गया। इस समूह का मुख्यालय ईरान ले जाया गया, जहां यह सन् 1979 तक रहा; इस्लामी क्रांति के कारण इसे यूरोप ले जाने पर बाध्य होना पड़ा। अपने पिता के निर्यात व्यापार को विकसित करने के लिए श्रीचंद हिंदुजा और उनके भाई गोपीचंद हिंदुजा लंदन चले गये।
हिंदुजा समूह में शामिल हैं:
Hinduja leyland Finance limited
हिंदुजा समूह ने 1987 में भारत के दूसरे सबसे बड़े एचसीवी (HCV) निर्माता अशोक लेलैंड[1] को खरीद लिया। भारत में समूह का यह पहला सशक्त प्रयास था।
कंपनी का बड़ा निर्यात बाजार है; इसके अलावा श्रीलंका में 65 फीसदी से अधिक का बाजार शेयर भी है (16 टन प्लस श्रेणी में), और साथ ही दुबई के बस अनुभाग में भी इतना ही बाजार शेयर है। 2003-2005 के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ के तेल और खाद्य कार्यक्रम के तहत कंपनी को ईरान के लिए 3322 ट्रकों के ऑर्डर प्राप्त हुए, जो कि भारतीय वाणिज्यिक वाहन उद्योग में सबसे बड़ा ऑर्डर था।
सीएनजी (कंप्रेस्ड नेचुरल गैस) बसों और सशस्त्र बलों के लिए विशेष वाहनों के मामले में कंपनी अग्रणी भी है; इन दोनों तरह के वाहनों से कंपनी को अतिरिक्त निर्यात के मौके मिले।[2]
कंपनी फिलहाल में प्रति वर्ष 84,000 वाहनों का उत्पादन कर रही है, जबकि उसका लक्ष्य इस साल 1,00,000 वाहनों का है। संयुक्त अरब अमीरात में रस अल खैमाह इंवेस्टमेंट ऑथोरिटी (आरएकेआईए (RAKIA)) के साथ संयुक्त उद्यम से एक नया वाहन फिटिंग संयंत्र बनाया जा रहा है, जिसके मार्च 2008 तक शुरू हो जाने की उम्मीद है।
कंपनी डेट्रायट स्थित "डिफायंस टेस्टिंग एंड इंजीनियरिंग सर्विसेज" (डीटीई (DTE)) को अधिग्रहित करने की प्रक्रिया में है, जो प्रमुख अमेरिकी कार निर्माताओं की आपूर्ति किया करती है।
आईडीएल (IDL) इंडस्ट्रीज लिमिटेड के साथ गल्फ ऑयल इंडिया लिमिटेड के विलय हो जाने से हिंदुजा समूह का रासायनिक हब मजबूत हुआ, यह विलय 1 जनवरी 2002 से प्रभावी हुआ। भारतीय रासायनिक क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत करने में हिंदुजा समूह को इस विलय से मदद मिली।
फिलहाल कंपनी के चार प्रमुख ऑपरेटिंग प्रभाग हैं:
1)वाणिज्यिक विस्फोटक - विस्फोटकों, डिटोनेटर, विस्फोटक को बांधने वाले धातु के आवरण और सेना के लिए विशेष उपकरण तथा अंतरिक्ष अनुप्रयोगों का प्रबंधन करता है। भारत में आठ संयंत्र हैं, इसका हैदराबाद का संयंत्र विश्व की सबसे बड़ी डेटोनेटर विनिर्माण इकाई है (प्रतिवर्ष 192 मिलियन)। फिलीपींस सहित दक्षिण एशिया के देशों, उत्तरी अफ्रीका, फारस की खाड़ी देशों, मध्य-पूर्व और दक्षिणी यूरोप के 21 देशों का यह सबसे बड़ा विस्फोटक और डेटोनेटर का निर्यातक है।
2)ल्युब्रिकेंट्स - ल्युब्रिकेंट्स, ग्रीस और कार की सहायक सामग्री।1993 में स्थापित और अब भारत में निजी क्षेत्र का दूसरा सबसे बड़ा ल्युब्रिकेंट्स तेल निर्माता।
3)खनन और आधारभूत संरचना - कोयला और लौह अयस्क के क्षेत्र में बड़े स्तर के खनन सेवाओं के उपक्रम के अलावा भूमिगत मेट्रो रेलवे और राष्ट्रीय राजमार्ग जैसी बुनियादी संरचना के सेवा क्षेत्र। फिलहाल यह कोल इंडिया लिमिटेड के लिए दो बड़ी परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में लगा हुआ है। लौह अयस्क के खनन क्षेत्र में यह प्रभाग बड़े पैमाने पर काम कर रहा है, जहां लौह अयस्क से समृद्ध बहुत बड़े खानों में कार्यरत है।
4)विशेष रसायन - सक्रिय दवा सामग्री, मध्यवर्ती सामग्री और टेबलेट, कैप्सूल, इंजेक्शन और तरल दवा जैसी परिष्कृत सामग्री का विनिर्माण। इसके अलावा अनुबंध अनुसंधान और विकास सेवाएं चलाता है। विनिर्माण कार्य हैदराबाद होते हैं।
गल्फ ऑयल इंटरनेशनल, जो लंदन कार्यालयों से संचालित होता है, दुनिया की सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनियों और पेट्रोलियम उत्पाद के व्यापारियों में से एक है। 83 से अधिक देशों में कंपनियों के अपने नेटवर्क के माध्यम से यह संयुक्त उद्यम, लाइसेंसधारियों और वितरकों के बीच सक्रिय है। दुनिया भर में 3000 से अधिक लोग इसमें प्रत्यक्ष रूप से कार्यरत हैं और इससे अप्रत्यक्ष रूप से 30,000 से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है।
यूरोप के अधिकांश देशों, दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों और इंडोनेशिया में इसके फिलिंग स्टेशन हैं। बहुत सारे देशों में यह कार बैटरी, कार की देखभाल संबंधी उत्पाद, वाहन के एयर फिल्टर, लुब्रिकेंशन मशीनरी और खास तरह के रसायन भी बेचती है। सऊदी अरब में कंपनी अपनी विशेष गल्फ एक्सप्रेस के नाम से सेवा केंद्रों की विशिष्ट श्रृंखला का परिचालन कर रही है और बहरीन तथा मध्य-पूर्व के अन्य देशों में विस्तार की योजना बना रही है। खबर है कि यह भारत में तेल रिफाइनरी और सर्विस स्टेशनों की एक श्रृंखला स्थापित करने पर विचार कर रही है।
चीन में एक बड़े संयंत्र और मध्य-पूर्व, अफ्रीका और एशिया प्रशांत महासागर क्षेत्र में विस्तार के साथ इंडोनेशिया, श्रीलंका और चीन में प्रवेश करने तथा बड़े पैमाने पर दुबई, सऊदी अरब और भारत में परियोजनाओं के विस्तार की योजना के साथ गल्फ ऑयल इंटरनेशनल दुनिया के सबसे बड़े पेट्रोलियम उत्पाद के व्यापारियों में से एक है।
निजी क्षेत्र के बैंकों में इंडसइंड एक प्रमुख बैंक है। और यह केवल अकेला बैंक है जिसे एनआईआर (अप्रवासी भारतीयों) ने स्थापित किया है। और भारत में यह केवल अकेला व्यावसायिक बैंक है, जिसे नेटवर्क शाखा के लिए प्रमाणीकरण प्राप्त ISO-9001:2000 है। इसने 1 बिलियन रुपए की पूंजी से 1994 में कॉरपोरेट तथा एसएमई को ऋण देने के साथ अपना परिचालन शुरू किया और इसके बाद अशोक लेलैंड फाइनेंस लिमिटेड (एएलएफएल) के साथ 2004 में विलय इसका हो गया। इसने खुदरा बैंकिंग पर विशेष जोर डाला और फिर यह 10 बिलियन डॉलर की पूंजी वाले बैंक के रूप में विकसित हो गया, और अब इसकी कुल परिसंपत्ति 200 बिलियन रुपए के करीब है। 1.5 मिलियन ग्राहक और 170 शाखाओं तथा दूर-दराज के स्थानों में 99 एटीएमों (31 मार्च 2007 तक) के साथ यह भारत के 141 भौगोलिक स्थानों में फैला हुआ है।
दुबई और लंदन में विदेशी प्रतिनिधि कार्यालय होने के साथ दुनिया भर में 335 बैंकों के साथ इसके पत्र-व्यवहार बैंकिंग संबंध भी है। हाल ही में कुछ समय पहले, अपने एनआरआई व्यापार को बढ़ाने के लिए इस बैंक ने संयुक्त अरब अमीरात के यूनियन नेशनल बैंक और कतर में दोहा बैंक के साथ रणनीतिक समझौते किये। देश में 745 से अधिक विपणन केंद्रों वाली इंडसइंड मार्केटिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेस नामक एक कंपनी के मार्फ़त से ऋण उत्पादों की विपणन व्यवस्था के जरिये बैंक की राष्ट्रीय पहुंच और अधिक विस्तारित हुई। एस एंड पी की स्थानीय सहायक मूडी'ज एंड फिच के अपने वित्तीय साधनों के लिए बैंक के सुरक्षित उच्च घरेलू निवेश ग्रेड रेटिंग है।
हिंदुजा फाउंडरीज एक पांच दशक पुरानी और व्यावसायिक रूप से व्यवस्थित कंपनी है, जो भारत में विकासशील ऑटोमोबाइल ओईएम (OEMs) की ढलाई की जरूरतों को पूरा करती है। दक्षिण भारत में इसके तीन विनिर्माण संयंत्र चल रहे हैं। भारत में बनने वाले लगभग 30% वाहनों (कार, वाणिज्यिक वाहन और ट्रैक्टर) की प्रमुख ढलाई के काम की आपूर्ति इसी कंपनी द्वारा होती है। एक आधुनिक नयी ग्रीन फील्ड फाउंड्री चेन्नई के निकट श्रीपेरूमबदूर में अत्याधुनिक अनुसंधान व विकास केंद्र के साथ स्थापित की गयी, जिसने 2007 में उत्पादन शुरू कर दिया।
नए उभरते भारत के विकास के साथ ताल मिलाते हुए कंपनी ने पिछले पांच वर्षों में (2002-03 से 2006-07) लगभग 42% सीएजीआर (CAGR) (बिक्री-32 से 100 मिलियन डॉलर) की वृद्धि की और भारत में ऑटो घटक उद्योग के निर्धारित विकास के आधार पर अगले चार वर्षों में 35-40% सीएजीआर (CAGR) (बिक्री - 100 से 250 मिलियन डॉलर) की वृद्धि की इसकी योजना है।
हिंदुजा ग्लोबल सॉल्यूशंस लिमिटेड (पहले एचटीएमटी (HTMT) ग्लोबल सॉल्यूशंस) ने 1993 में अपना आईटी आपरेशन शुरू किया। यह अनेक फॉर्च्यून 500 कंपनियों जैसे अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों को बैक ऑफिस प्रोसेसिंग, संपर्क केंद्र और विशिष्ट रूप से बनी आईटी सेवाओं सहित आउटसोर्स सोल्यूशंस मुहैया करती है। हिंदुजा ग्लोबल सॉल्यूशंस ने एक आईटी परामर्शदाता फर्म की तरह अपनी शुरुआत की थी, जो आईबीएम के साथ भागीदारी में अधिसंसाधित्र मंच पर केन्द्रित सोल्यूशन मुहैया करने में विशेषज्ञ थी। 1995 में, कंपनी ने अधिसंसाधित्र में कॉर्पोरेट प्रशिक्षण के क्षेत्र में प्रवेश किया।
उत्तरी अमेरिका और लंदन के कार्यालयों में कंपनी के 9500 से अधिक कर्मचारी हैं और भारत में बंगलौर, मैसूर, मुंबई, नागरकोइल, चेन्नई, दुर्गापुर और हैदराबाद; Lyndhurst [disambiguation needed], अमेरिका में पेओरिया, इलिनोइस, सेंट लुइस, वाटरलू और एल पासो; कनाडा में मोंट्रियल, मॉरिशस में साइबर सिटी तथा फिलिपीन्स में मनीला में 19 डिलीवरी केंद्र हैं।
संपर्क केंद्र और बैक ऑफिस सेवा प्रभाग में कई अंतरराष्ट्रीय ध्वनि केन्द्रों और बैक ऑफिस प्रसंस्करण इकाइयों के लिए प्रमुख स्वास्थ्य बीमा, फार्मास्यूटिकल्स, जीवन विज्ञान, दूरसंचार, बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स / उत्पाद, प्रौद्योगिकी, ऑटोमोटिव, सरकार, मीडिया व मनोरंजन, ऊर्जा और उपयोगिताएं तथा परिवहन और रसद कंपनियां हैं।
हाल ही में एचटीएमटी (HTMT) द्वारा किए गए अधिग्रहण ने 65 ग्राहकों और 200 मिलियन यूएस डॉलर के राजस्व के साथ इसे भारत की बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ (BPO)) कंपनियों में से शीर्ष पर पहुंचा दिया है। यह उन कुछ कंपनियों में से एक है जिनका भारत में मुख्यालय है और जिनके विश्व स्तर पर अनेक डिलीवरी केन्द्र हैं, साथ ही अमेरिका में बड़े स्तर पर मौजूदगी है। इसके मॉरीशस केंद्र फ़्रांसिसी आबादी और टेक्सास केन्द्र स्पैनिश भाषा-भाषियों की मदद करते हैं।
हिंदुजा टीएमटी या एचटीएमटी की छत्रछाया में आने वाली कंपनियों में इनकेबलनेट भी एक है। यह मीडिया और संचार के क्षेत्र में इसके प्रवेश का एक हिस्सा है।
बोस्टन के साचुसेट्स जनरल अस्पताल (एमजीएम (MGM)) के सहयोग से एक चिकित्सा अनुसंधान केन्द्र की स्थापना के साथ पी.डी. हिंदुजा नेशनल अस्पताल और मेडिकल रिसर्च सेंटर एक आधुनिक बहु-विशेषता वाला तृतीयक देखभाल अस्पताल है। अस्पताल में रोगियों के लिए 350 बिस्तर हैं, इसके अलावा विभिन्न विशेष प्रकार के गंभीर रोगियों के लिए 53 बिस्तर हैं। एक तृतीयक देखभाल अस्पताल के रूप में, यहां जांच और निदान से लेकर इलाज, शल्य चिकित्सा और ऑपरेशन के बाद की देखभाल की जाती है। उत्कृष्ट प्रबंधन प्रणाली के लिए इसे नीदरलैंड के केमा (KEMA) का प्रतिष्ठित आईएसओ (ISO) 9002 पुरस्कार प्राप्त हुआ, जो कि तृतीयक दखभाल अस्पतालों में पहला है। इसके अलावा उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में परोपकारिता कार्य के लिए इसे हाल ही में प्रतिष्ठित "गोल्डेन पीकॉक ग्लोबल अवार्ड" प्राप्त हुआ।
इस अस्पताल में 15 मिलियन से अधिक आउटडोर रोगियों का इलाज किया गया है और एक मिलियन से अधिक सर्जरी तथा 7.5 मिलियन से अधिक लैब परीक्षण किए गए हैं। इसकी प्रयोगशाला पहली अस्पताल प्रयोगशाला है, जिसे कॉलेज ऑफ़ अमेरिकन पैथोलोजिस्ट्स की ओर से मान्यता प्रदान की गयी है।
हिंदुजा समूह की एक कंपनी डिफायंस टेक्नोलॉजीज वैश्विक डिलीवरी मॉडल का लाभ उठाते हुए वैश्विक ग्राहकों को इंजीनियरिंग, ईआरपी (ERP) और आईटी क्षेत्र को सेवा प्रदान करने वाली एक प्रमुख प्रदाता है। 1976 में संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थापित डिफायंस को बाद में हिंदुजा समूह द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया और 120 से अधिक वैश्विक ग्राहकों और 30 फॉर्च्यून 500 कंपनियों सहित शीर्ष वैश्विक कंपनियों की सेवा का इसका एक लंबा इतिहास है। भारत के चेन्नई में इसका मुख्यालय है। इसके अलावा भारत के चेन्नई तथा बंगलौर में डिफायंस के विश्व स्तरीय विकास केंद्र हैं और मिशिगन के वेस्ट लैंड और ट्रॉय में अत्याधुनिक परीक्षण सुविधाएं हैं। डिफायंस के अमरीका, यूरोप, मध्य पूर्व, दक्षिण अफ्रीका और भारत में व्यापारिक कार्यालय हैं।
डा. वी सुमंतरन डिफायंस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के अध्यक्ष और श्री सुबु डी सुब्रमण्यम, मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक हैं।
अधिक जानकारी यहां उपलब्ध हैं।[3]
हिंदुजा बैंक (स्विट्जरलैंड) लिमिटेड की स्थापना 1978 में एक वित्तीय कंपनी के रूप में की गयी और जो 1994 में स्विस विनियमित बैंक बन गया।
हिंदुजा बैंक का मुख्यालय जेनेवा में है और स्विट्जरलैंड में एक विकसित नेटवर्क सहित ल्यूसर्न, ज्यूरिख, सेंट मार्गरेथेन और बासले में कार्यालय हैं। इसके अतिरिक्त लंदन, दुबई, पेरिस, न्यूयॉर्क, मॉरिशस और चेन्नई में भी इसकी वैश्विक उपस्थिति है। वर्षों से इसके कारोबार का विस्तार करते इसमें धन प्रबंधन, व्यापार वित्त सेवा, वैश्विक निवेश सॉल्यूशंस और कॉर्पोरेट वित्त सेवाओं को शामिल किया गया है। अधिक जानकारी यहां उपलब्ध हैं।[4]
श्रीचंद, गोपीचंद और प्रकाश हिंदुजा बोफोर्स घोटाले की लंबी चलने वाली जांच से जुड़े रहे, इस घोटाले में स्वीडिश कंपनी बोफोर्स पर यह आरोप लगाया गया है, कि उसने 1986 में भारत सरकार को 1.3 बिलियन डॉलर के 400 तोप की बिक्री के सिलसिले में सरकारी अधिकारीयों और राजनीतिज्ञों को कथित रूप से गैर-कानूनी रिश्वत दिए हैं। तीनों भाइयों पर भारत की केंद्रीय जांच ब्यूरो ने अक्टूबर 2000 में आरोप लगाए,[5] लेकिन 2005 में दिल्ली के उच्च न्यायालय ने उन पर लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया। न्यायालय ने सबूत के अभाव में ऐसा किया और कहा कि अभियोजन पक्ष मामले के प्रमुख दस्तावेज "बेकार और संदिग्ध" हैं क्योंकि इनके मूल स्रोत की पुष्टि नहीं की जा सकती। न्यायाधीश आरएस सोढ़ी ने कहा: "14 साल तक चले मुकदमे और इस मामले पर खर्च हुए जनता के 2.5 बिलियन रुपए पर मैं अपनी अस्वीकृति व्यक्त करता हूं। इससे हिंदुजाओं को भारी आर्थिक, भावनात्मक, पेशेवर और व्यक्तिगत नुकसान हुआ है।"[6]
जनवरी 2001 में, ब्रिटेन की सरकार के मंत्री पीटर मंडेलसन ने श्रीचंद हिंदुजा की ओर से अपने गृह मंत्री माइक ओ'ब्रायन को फोन किया, उस समय श्रीचंद हिंदुजा ब्रिटिश नागरिकता पाना चाहते रहे थे और उनकी पारिवारिक कंपनी मिलेनियम डोम के "फेथ ज़ोन" की मुख्य प्रायोजक रही थी। नतीजतन, 24 जनवरी 2001 को मंडेलसन को दूसरी बार सरकार से इस्तीफा देना पड़ा,[7][8] हालांकि वे अपने को निर्दोष बताते रहे। सर एंथनी हेमंड द्वारा की गयी एक स्वतंत्र जांच से यह निष्कर्ष निकाला गया कि न तो मंडेलसन और न ही किसी अन्य ने अनुचित तरीके से काम किया है।
जनवरी 2001 में, आप्रवासन मंत्री बारबरा रोशे ने कॉमन्स को एक लिखित उत्तर में बताया, कि लीसेस्टर पूर्व के सांसद और विदेश मंत्री कीथ वाज तथा अन्य सांसदों ने भी हिंदुजा भाइयों के सिलसिले में गृह मंत्रालय से संपर्क किया था और हिन्दुजाओं की नागरिकता संबंधी आवेदन पर निर्णय लेने की समयावधि के बारे में जानकारी चाही थी।[9]
25 जनवरी को वाज हिंदुजा प्रसंग पर विपक्ष के निशाने पर आ गए और उनकी पूरी भूमिका की जानकारी चाहते हुए अनेक ससदीय सवाल पूछे गए। वाज ने विदेश विभाग के एक प्रवक्ता के मार्फ़त बताया कि वे सर एंथोनी हमोंड क्वींस काउंसल के सवालों के जवाब देने के लिए "पूरी तरह से तैयार" है; श्री हमोंड को प्रधानमंत्री ने इस मामले की जांच करने के लिए कहा था। वाज ने कहा कि वे कुछ समय से हिंदुजा भाइयों को जानते हैं; 1993 में जब धर्मार्थ हिंदुजा फाउंडेशन की स्थापना की जा रही थी तब वे वहां मौजूद थे और 1998 में दिवाली समारोह के समय जब भाइयों ने टोनी व चेरी ब्लेयर को आमंत्रित किया था तब उन्होंने भी वहां भाषण दिया था।[10]
26 जनवरी 2001 को, प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर पर आरोप लगाया गया कि वे हिंदुजा पासपोर्ट मामले में स्वतंत्र जांच को यह कहकर प्रभावित करना चाह रहे हैं कि कीथ वाज ने "कोई गलत काम" नहीं किया है। उसी दिन, वाज ने संवाददाताओं से कहा कि उन्हें अपने व्यवहार पर "खेद" होगा जब मामले के तथ्य सामने आएंगे। "इस रिपोर्ट के आने के बाद आपमें से कुछ लोग बड़े मूर्ख दिखने लगेंगे। तथ्यों के सामने आने पर, पीटर तथा अन्य लोगों और मेरे बारे में आप लोगों द्वारा कही गयी कुछ बातों पर आप लोगों को बहुत पछतावा होगा।" उन्होंने कहा। उनसे जब यह पूछा गया, कि हिंदुजा भाइयों के पासपोर्ट संबंधी आवेदन पर सामान्य रूप से कहीं अधिक तेजी से क्यों काम पूरे किये गए और छः महीने में ही उन्हें मंजूरी मिल गयी जबकि इसमें दो साल तक का समय लग सकता है, इसके जवाब में उन्होंने कहा, "यह असामान्य नहीं है।"[11]
29 जनवरी को सरकार ने पुष्टि की कि हाल के दिनों में पहले एशियाई मंत्री के रूप में वाज की नियुक्ति पर सितम्बर 1999 को हिंदुजा फाउंडेशन ने एक स्वागत समारोह आयोजित किया था। सदस्यों की दिलचस्पी के हाउस ऑफ़ कॉमंस के रजिस्टर में वाज द्वारा इस पार्टी को दर्ज नहीं किया गया था और कंजरवेटिव संसदीय अभियान इकाई के प्रमुख जॉन रेडवुड ने इस आतिथ्य को स्वीकार करने के बारे में उनसे सवाल किये।[12]
मार्च में वाज को आदेश दिया गया था वे वित्तीय मामलों पर एलिजाबेथ फिल्किन द्वारा शुरू की गयी नयी जांच में पूरा सहयोग दें। वाज के वरिष्ट विदेश मंत्री रोबिन कूक ने भी हिंदुजा भाइयों के साथ अपने संपर्कों के बारे में सारे आरोपों का पूरा जवाब देने के लिए कहा। हाउस ऑफ़ कॉमंस में हिंदुजा-प्रायोजित स्वागत समारोह को आयोजित करने में उनकी पत्नी की कंपनी मेप्सब्युरी कम्युनिकेशंस द्वारा मदद देने के एवज में हिंदुजा फाउंडेशन द्वारा 1,200 पाउंड की राशि दिए जाने के सिलसिले में चर्चा के लिए 20 मार्च को श्री वाज ने श्रीमती फिल्किन से मुलाक़ात की। वाज ने पहले हिन्दुजाओं से पैसे लेने की बात से इंकार किया था, लेकिन इतना कहा था कि जिस लेन-देन पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं उससे उन्हें कोई निजी लाभ नहीं हुआ है।[13][14]
जून 2001 में वाज ने स्वीकार किया कि जब वे एक साधारण सांसद थे तब उन्होंने ब्रिटिश नागरिकता के हिंदुजा भाइयों के आवेदनों के सिलसिले में अभिवेदन किया था। टोनी ब्लेयर ने भी माना कि अन्य एशियाईओं की ओर से वाज ने "अभिवेदन किया" था।[15] 11 जून 2001 को, वाज को यूरोप मंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया गया, उनकी जगह पीटर हैन को लाया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि वाज ने टोनी ब्लेयर को लिखकर कहा था कि सेहत की वजह से वे अपना पद छोड़ना चाहते हैन।[16]
दिसंबर 2001 में एलिजाबेथ फिल्किन ने हिंदुजा भाइयों द्वारा उनकी पत्नी की कंपनी को किये भुगतान को रजिस्टर में दर्ज नहीं करने के आरोप से बरी कर दिया, लेकिन कहा कि भुगतान को छिपाने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के साथ सांठगांठ की थी। फिल्किन की रिपोर्ट में कहा गया है कि कानूनी सलाह के लिए उनकी पत्नी को भुगतान किया गया था और कहा कि इससे सीधे तौर पर वाज को कोई निजी लाभ नहीं हुआ है और उनकी पत्नी को हुए भुगतान के बारे में बताने का कॉमंस का नियम नहीं है। हालांकि उन्होंने उनकी गोपनीयता की आलोचना करते हुए कहा, "मेरे सामने यह स्पष्ट हो चुका है, कि इस तथ्य को छिपाने के लिए श्री वाज और उनकी पत्नी के बीच महीनों तक सांठ-गांठ रही और हिंदुजा परिवार के साथ उनके संभावित आर्थिक संबंधों की सटीक जानकारी प्राप्त करने से भी मुझे रोका गया।"[17]
फ़रवरी 2005 में हिंदुजा भाइयों की भारत-स्थित प्रमुख कंपनी अशोक लेलैंड ने सूडान के रक्षा मंत्रालय को 100 सैन्य वाहन की आपूर्ति करने के समझौते की घोषणा की। हथियार संबंधी राजनीतिज्ञ मार्क थॉमस ने आरोप लगाया कि इससे ब्रिटेन के हथियार निर्यात क़ानून का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि कंपनी के निदेशक ब्रिटेन के निवासी या नागरिक हैं।[18]
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की उपेक्षा की गयी (|author=
सुझावित है) (मदद)
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