![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि मानव अस्तित्व का अपना इतिहास है। हिमाचल प्रदेश का इतिहास उस समय में ले जाता है जब सिन्धु घाटी सभ्यता विकसित हुई। इस बात की सत्यता के प्रमाण हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में हुई खुदाई में प्राप्त सामग्रियों से मिलते हैं। प्राचीनकाल में इस प्रदेश के आदि निवासी दास, दस्यु और निषाद के नाम से जाने जाते थे। उन्नीसवीं शताब्दी में रणजीत सिंह ने इस क्षेत्र के अनेक भागों को अपने राज्य में मिला लिया। जब अंग्रेज यहां आए, तो उन्होंने गोरखा लोगों को पराजित करके कुछ राजाओं की रियासतों को अपने साम्राज्य में मिला लिया।[1]
1945 ई. तक प्रदेश भर में प्रजा मंडलों का गठन हो चुका था। 1946 ई. में सभी प्रजा मंडलों को एचएचएसआरसी में शामिल कर लिया तथा मुख्यालय मंडी में स्थापित किया गया। मंडी के स्वामी पूर्णानंद को अध्यक्ष, पदमदेव को सचिव तथा शिव नंद रमौल (सिरमौर) को संयुक्त सचिव नियुक्त किया। एचएचएसआरसी के नाहन में 1946 ई. में चुनाव हुए, जिसमें यशवंत सिंह परमार को अध्यक्ष चुना गया। जनवरी, 1947 ई. में राजा दुर्गा चंद (बघाट) की अध्यक्षता में शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन की स्थापना की गई।
1950 ई. में प्रदेश के पुनर्गठन के अंतर्गत प्रदेश की सीमाओं का पुनर्गठन किया गया। कोटखाई को उपतहसील का दर्जा देकर खनेटी, दरकोटी, कुमारसैन उपतहसील के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र कोटखाई में शामिल किए गए। कोटगढ़ को कुमारसैन उपतहसील में मिला गया। उत्तर प्रदेश के दो गांव संसोग और भटाड़ जो देवघर खत में थे उन्हें जुब्बल तहसील में शामिल कर दिया गया।
पंजाब के नालागढ़ से सात गांव लेकर सोलन तहसील में शामिल गए गए। इसके बदले में शिमला के नजदीक कुसुम्पटी, भराड़ी, संजौली, वाक्ना, भारी, काटो, रामपुर। इसके साथ ही पेप्सी (पंजाब) के छबरोट क्षेत्र कुसुम्पटी तहसील में शामिल कर दिया गया।
बिलासपुर रियासत को 1948 ई. में प्रदेश से अलग रखा गया था। उन दिनों इस क्षेत्र में भाखड़ा-बांध परियोजना का कार्य चलाने के कारण इसे प्रदेश में अलग रखा गया। एक जुलाई, 1954 ई. को कहलूर रियासत को प्रदेश में शामिल करके इसे बिलासपुर का नाम दिया गया। उस समय बिलासपुर तथा घुमारवीं नामक दो तहसीलें बनाई गईं। यह प्रदेश का पांचवां जिला बना। 1954 में जब ‘ग’ श्रेणी की रियासत बिलासपुर को इसमें मिलाया गया, तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग कि.मी.हो गया।
एक मई, 1960 को छठे जिला के रूप में किन्नौर का निर्माण किया गया। इस जिला में महासू जिला की चीनी तहसील तथा रामपुर तहसील को 14 गांव शामिल गए गए। इसकी तीन तहसीलें कल्पा, निचार और पूह बनाई गईं।
वर्ष 1966 में पंजाब का पुनर्गठन किया गया तथा पंजाब व हरियाणा दो राज्य बना दिए गए। भाषा तथा तिहाड़ी क्षेत्र के पंजाब से लेकर हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिए गए। संजौली, भराड़ी, कुसुमपटी आदि क्षेत्र जो पहले पंजाब में थे तथा नालागढ़ आदि जो पंजाब में थे, उन्हें पुनः हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिया गया। सन 1966 में इसमें पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को मिलाकर इसका पुनर्गठन किया गया तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 55,673 वर्ग कि॰मी॰ हो गया।
हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा २५ जनवरी १९७१ को मिला। 25 जनवरी 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला आकर ऐतिहासिक रिज मैदान पर भारी बर्फबारी के बीच हिमाचल वासियों के समक्ष हिमाचल प्रदेश का १८ वें राज्य के रूप में उद्घाटन किया। 1 नवम्बर 1972 को कांगड़ा ज़िले के तीन ज़िले कांगड़ा, ऊना तथा हमीरपुर बनाए गए। महासू ज़िला के क्षेत्रों में से सोलन ज़िला बनाया गया।
![]() |
![]() |
![]() |
डा. यशवंत सिंह परमार वर्ष 1976 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद ठाकुर राम लाल मुख्यमंत्री बने और प्रदेश बागडोर संभाली। वर्ष 1977 में प्रदेश में जनता पार्टी चुनाव जीती और शांता कुमार मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1980 में ठाकुर राम लाल फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो गए। 8 अप्रैल 1983 को उनके स्थान पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को बनाया गया। 1985 के चुनाव में वीरभद्र सिंह नेतृत्व में कांग्रेस (ई) पार्टी को भारी बहुमत मिला। और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। 1990 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और शांता कुमार दुबारा मुख्यमंत्री बनाया गया। 15 दिसम्बर 1992 को राष्ट्रपति के अध्यादेश द्वारा भाजपा सरकार और विधानसभा को भंग कर दिया गया। हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। प्रदेश में दुबारा चुनाव कराए गए और वीरभद्र सिंह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए। वर्ष 1998 के चुनाव में सता भाजपा के हाथ चली गई। और प्रेम कुमार धूमल को पहली बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वर्ष 2003 के चुनाव में भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई और इस दौरान मुख्यमंत्री फिर से वीरभद्र सिंह को मनाया गया। वर्ष 2007 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई और इस दौरान मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल बने। नवम्बर २०१२ में हिमाचल प्रदेश की हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए हुआ चुनाव था। कांग्रेस ने इस चुनाव में जीत हासिल की। ६८ सीटो में से ३६ सीट जीत कर कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई और वीरभद्र सिंह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए। नवम्बर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने राज्य का विधानसभा चुनाव प्रो० प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में लड़ा। 18 दिसम्बर 2017 को घोषित नतीजों में धूमल की हार के बाद केन्द्रीय नेतृत्व ने हिमाचल की बागडोर मण्डी ज़िला के सराज विधानसभा क्षेत्र से पांच बार रहे विधायक जयराम ठाकुर को सौंपी। हिमाचल के इतिहास में यह पहली बार है जब मण्डी ज़िले से कोई मुख्यमंत्री बना है।
{{cite web}}
: Cite has empty unknown parameter: |dead-url=
(help)