वानीरा गिरि | |
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जन्म | खर्साङ्ग, दार्जिलिङ्ग | अप्रैल ११, १९४६
राष्ट्रियता | ![]() |
शिक्षा | एम.ए., एम.एड., विद्यावारिधि (नेपाली साहित्य) |
व्यवसाय | शिक्षण, लेखन |
प्रसिद्धि कारण | कविता, उपन्यास |
उल्लेखनीय कार्यसभ | कारागार, विर्बन्ध, जीवन थामहरु, एउटा जिउँदो जङ्गबहादुर, मेरो आविष्कार |
जीवनसाथी(सभ) | शङ्कर गिरी |
बालबच्चा | अपूर्ण गिरी, अपराजिता गिरी |
अभिभावक(सभ) | इन्द्रराज गिरी, जानकीदेवी |
पुरस्कार | रत्नश्री स्वर्ण पदक गोरखा दक्षिण बाहु चौथा लोकप्रिया देवी पुरस्कार-२०४८ साझा पुरस्कार - २०५६ महाकवि देवकोटा पुरस्कार - २०७३ |
वानीरा गिरि (अङ्ग्रेजी: Banira Giri) क जन्म सन् १९४६, अप्रिल ११ विक्रम सम्बत्: २००३ बैशाख २२ गते शैन दिन भेल छल ।[१][२] ओ नेपाली भाषासाहित्यक समकालीन पुस्ताक सशक्त प्रतिनिधि स्रष्टा छी ।[३]ओ नेपाली साहित्यमे पीएच्.डी. करल प्रथम नारी स्रष्टा सेहो छी ।[४][५][६]
पिता इन्द्रराज गिरि आ माता जानकीदेवीक ६ टा सन्तानमध्ये सबसँ छोटकी पुत्रीक रूपमे वानीरा गिरिक जन्म भेल छल । बानिराक जन्म दार्जिलिङक खरसाङमे संवत् २००३ वैशाख २२ गते शैनदिन भेल छल । बाल्यकालमे वानीरा गिरिक नाम सत्यदेवी छल । ओ अक्षय तृतीयाक दिन जन्मलाक कारण बानिराक सत्यदेवी कहल जाएत छल । वानीरा गिरि सात वर्षक छल जब बानिराक माताक स्वर्गीयवास भेल छल । पुत्रीक पढाइलेखाइसँ इन्द्रराज गिरि बहुत सन्तुष्ट छल जेहि कारण ओ अपन पुत्री भविष्यमे डाक्टर बनाबैक सोच राखने छल । सेहिअनुरूप वानीरा आई.एस्सी.पढलक । आई.एस्सीक अन्तिम परीक्षा आबैक पहिले अनिराक पिताक स्वर्गारोहण भेल छल ।[३]
वानीरा गिरि चाइर वर्षके छल जब ओ नेपाली वर्णमाला पढ्वाक लेल शुरुवात केनेए छल । तै समयमे ओ अपने गाउँक स्कट मिसन स्कुलमे भर्ना भेल छल । ओ स्कुलमे बानिरा छ कक्षा उत्तीर्ण करलक । ओ कक्षा एकसँ छ धरि पढाइमे प्रथम होएत रहल । तेहि पश्चात बानिराक ओहि ठामक सेन्ट जोसेफ स्कुलमे स्थानान्तरण कएल गेल छल । ओहो ठाम बानिरा कक्षामे प्रथम आ कहियो द्वितीय होएत छल । साथे ओहि स्कुलसँ ओ २०१६ सालमे एस.एल.सी. पास करलक । ओ स्नातक करैक पश्चात एम.ए. पढ् २०२२ सालमे काठमाडौं आएल आ एम.ए.मे भर्ना लेलक । भारतीय विद्यार्थीक नेपाली पढ् लेल श्री ५ महेन्द्र छात्रवृत्तिअन्तर्गत ओ भर्ना भेल छल । ओ त्रिभुवन विश्वविद्यालयसँ एम.एड्. सेहो करलक । पढाइमे बानिराक हौसला आर बुलन्द होएत गेल । तेहि पश्चात ओ विद्यावारिधि सेहो करलक आ अपन मन पसन्दक कविक पीएच्.डी.क विषय बनेलक ‘गोपालप्रसाद रिमालक काव्यमे स्वच्छन्दतावाद' । एहि विषयमे वानीरा पीएच्.डी. करलक आ नेपाली साहित्यमे पीएच्.डी. करला ओ प्रथम नारी भेल छल ।[३][६]
काठमान्डू एलाक बाद वानीरा गिरिक शङ्कर गिरिसँ परिचय भेल आ अन्तत: २०२३ सालमे इन्जिनियर गिरिसँ बानिराक वैवाहिक जीवन सेहो स्थापित भेल । बानिराक एक पुत्र अपूर्ण आ एक पुत्री अपराजिता अछि ।[३]
वानीरा गिरि बाल्यकालसँ कवितालेखनमे रुचि राखैत छल । एगार वर्षक उमेरमे ओ कवितालेखनममे पुरस्कृत भगेल छल । बानिराक विषयमे ईश्वरवल्लभ कहने छल “बहिन वानीरा एकटा सशक्त कवयित्री छल । वानीरा भविष्यक काव्यभूमिक राप हम पहिले देखने रही । जेहिकारण अगमसिंह गिरिक आयोजना कएल कविगोष्ठीमे हम वानीराक पुरस्कारस्वरूप किछ कृति देनेए रही ।” ओ जेना कथा, कविता लिखैत छल तहिना स्कुलमे आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रममे सहजतापूर्वक भाग लएत छल । तेसर कक्षामे ओ सर्वप्रथम कलाकारक भूमिका सेहो निर्वाह केनेए छल । चाइर कक्षामे सेहो ओ नाटकमे अपन भूमिका देखेने छल । चाहे वक्तृत्वकलामे होए, चाहे गायनमे होए, चाहे नृत्यमे होए आ चाहे नाटकमे होए कोनो विषयमे भाग लेलाक बाद ओ प्रतियोगितामे प्रथम होएत छल आ कही कतौ द्वितीय सेहो होएत छल । कविताप्रतियोगितामे सेहो वानीराक स्तर अग्रपङ्क्तिमे रहैत छल । ओ अपना साथे साथ बहुत लोगसभक सेहो कविता लिखैक लेल प्रोत्साहन करैत छल । उदाहरणक लेल ओ ‘मुटु’ नामक भित्तेपत्रिक सेहो निकालक । एघार वर्षक उमेरमे ओ भित्तेपत्रिक सम्पादन आ प्रकाशन सेहो करैत छल । वानीरा गिरि बाल्यकालसँ अपनाक साहित्यदिस गेलाक बादो पहिलबेर वानीरा औपचारिक कविता २०२० सालमे छापल गेल छल । डी.के. खालिङक सम्पादनमे दार्जिलिङ्गसँ प्रकाशित ‘दियो’ मा ‘मेरो साथी भन्छ’ शीर्षक कविता छापलाक बाद ओ जनसमक्ष प्रस्तुत भेल छल । तेकर बाद ओ कवितालेखनमे क्रमश: चम्कैत गेल । दार्जिलिङक विभिन्न पत्रपत्रिकाक अतिरिक्त काठमाडौंक सेहो अनगिन्ती पत्रपत्रिकामे वानीराक रचनासभ प्रकाशित होएत रहल । कृतिकारक रूपमे ओ २०३१ सालमे देखा परल । तै समयमे वानीराक ‘एउटा एउटा जिउँदो जङ्गबहादुर’ नामक कवितासङ्ग्रह प्रकाशित भेल । तेकर बाद २०३४ सालमे वानीराक दोसर कवितासङ्ग्रह प्रकाशित भेल ‘जीवन: थायमरू’ आ २०३५ सालमे वानीराक ‘कारागार’ नामक उपन्यास प्रकाशनमे आएल । ‘मेरो आविष्कार’ नामक वानीराक आत्मकाव्य सेहो २०३४ सालमे प्रकाशित भेल । तहिना २०४४ सालमे ओ ‘निर्बन्ध’ नामक उपन्यास प्रकाशनमे आनलक आ २०५६ मे वानीरा दोसर उपन्यास ‘शब्दातीत शान्तनु’ प्रकाशित भेल । वानीराक ‘शब्दातीत शान्तनु’ नेपाली साहित्यमे बहुत चर्चित बनल । वानीराक ‘शब्दातीत शान्तनु’ कृति संवत् २०५६ क साझा पुरस्कार सेहो प्राप्त करलक । वानीराक पाएल पुरस्कारक लेखाजोखा करबैत ओ दार्जिलिङसँ काठमाडौं आएल वर्ष नेपाल राजकीय प्रज्ञाप्रतिष्ठानसँ आयोजित कविता महोत्सवमे द्वितीय भेल छल । ओ प्रबल गोरखा दक्षिण बाहुसँ सेहो विभूषित भेल छल । वानीरा २०३३ सालमे अफ्रो एसियाली लेखक सम्मेलनमे भाग लेब सोभियत रुस गेल छल ।[३]
डा. वानीरा गिरिक कवितामे गहनतासँ भरल रहैत अछि , वास्तविकतासँ छुवल रहैत अछि आ यथार्थतासँ भरल रहैत अछि । ओ कवितामे जीवन लिखैत अछि आ जीवनमे कविता । गिरिक भावभावमे अर्थक बाध जोडल रहैत अछि । जेहि कारणओ कवितामय धर्तीक गीत लिखैत अछि । वानीराक कवितामे एकदिस दर्शनक साँध लगाएल रहैत अछि त दोसर दिस वानीराक काव्यात्मक विम्बमे फुल फुलल रहैत अछि । ओ जीवन आ जगतक प्रसङ्गक अलङ्कारमय बनबैत अछि ।[३]
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