हरिशयनी एकादशी | |
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अन्य नाम | महा-एकादशी |
समुदाय | हिन्दुसभ, विशेष रुपसँ वैष्णवसभ |
प्रकार | हिन्दु |
महत्व | चतुर्मासाकें सुरुवात |
पावनिसभ | भगवान विष्णुकें पुजा, प्रार्थना आ धार्मिक अनुष्ठान; आ सँगहि पन्ढरपुर यात्रा |
मानाएल | वार्षिक |
समबन्ध | प्रबोधिनी एकादशी[१][२] |
शयनी एकादशी, (शाब्दिक रूपसँ ११हम दिनकें निद्रा)[३], जेकरा कि अनेकौं अन्य नामसभसँ सेहो कहि के बुझल जाइत अछि, हिन्दुसभक अखाड महिना (जून-जुलाई) के इजोरिया पूर्णिमा (शुक्ल पक्ष) केरऽ ११हम चन्द्र दिवस (एकादशी) छी। एही अवसर पर हिन्दुसभक संरक्षक देवता, भगवान विष्णुकें अनुयायीसभ, वैष्णवसभक लेल पवित्र छी, किएकी ई ओ दिन मानल जाइत अछि जखन कि देवताक निद्रा शुरू होइत अछि।[४][५]
एही दिन भगवान विष्णु आ माता लक्ष्मी केरऽ चित्रकें पूजा कएल जाइत अछि, राति के संयममें प्रार्थना गावैत बिताओल जाइत अछि, आ भक्तजनसभ एही दिन व्रत सेहो करैत अछि आ प्रतिज्ञा लैत अछि, पूरे चतुर्मासा, वर्षा ऋतुक पवित्र चार महिनाकें अवधिकें रुपमें मनाओल जाइत अछि। एहीमें प्रत्येक एकादशी के दिन कुनु खाद्य पदार्थक त्याग केनाए वा व्रत केनाइ समावेश भऽ सकैत अछि।[कृपया उद्धरण जोड़ी]
एहन मान्यता अछि जे कि भगवान विष्णु क्षीर सागर - दूध के ब्रह्माण्डिय सागर - शेष, ब्रह्माण्डिय नाग पर सुति जाइत अछि।[६]विष्णु अन्ततः चारि महिना पश्चात प्रबोधिनी एकादशी - हिन्दुसभक कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) में इजोरिया पुर्णिमाक ११हम दिन - अपन निद्रासँ जागति अछि। एही अवधि केरऽ चतुर्मासा (शाब्दिक रूपसँ "चारि महिना") के रूपमें जानल जाइत अछि आ ई वर्षा ऋतु के साथ मिलैत अछि। शयनी एकादशी चातुर्मासाक शुरुवात छी। भक्तसभ ई दिन भगवान विष्णुकें प्रसन्न करवाक लेल चातुर्मासा व्रतक पालन केनाए शुरू करैत अछि। शयनी एकादशी के दिन व्रत रखल जाइत अछि। व्रतमें सभ अन्नसभ आ पियौज आ मसाला सहित किछ सब्जीसभ वर्जित होइत अछि।[७]