एम॰ एस॰ स्वामीनाथन

एम॰ एस॰ स्वामीनाथन
जन्म7 अगस्त 1925 Edit this on Wikidata
कुंभकोणम Edit this on Wikidata
मृत्यु28 सितंबर 2023 Edit this on Wikidata (आयु 98 वर्ष)
चेन्नई Edit this on Wikidata
राष्ट्रीयताभारत
कहाँ पढे
व्यवसायकृषि वैज्ञानिक
प्रसिद्ध हैंउच्च उत्पादन वाले गेंहू की प्रजाति का विकास करने के लिए
जीवनसाथीमीना स्वामीनाथन
पुरस्कार
  • रॉयल सोसाइटी के फेलो (1973)
  • Grand Officer of the Order of the Falcon Edit this on Wikidata

मनकोम्बु संबासिवन स्वामिनाथन (जन्म: 7 अगस्त 1925, 28 सितंबर 2023) कुम्भकोणम --२८ सितम्बर २०२३) भारत के आनुवांशिक-विज्ञानी (आनुवंशिक वैज्ञानिक) थे जिन्हें भारत की हरित क्रांति का जनक माना जाता है। उन्होंने 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकिसित किए। उन्हें विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1972 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। “कृषि परमो धर्मः मानव कृषि तथैव च: l” Prashant Singh

'हरित क्रांति' कार्यक्रम के तहत ज़्यादा उपज देने वाले गेहूं और चावल के बीज ग़रीब किसानों के खेतों में लगाए गए थे। इस क्रांति ने भारत को दुनिया में खाद्यान्न की सर्वाधिक कमी वाले देश के कलंक से उबारकर 25 वर्ष से कम समय में आत्मनिर्भर बना दिया था। उस समय से भारत के कृषि पुनर्जागरण ने स्वामीनाथन को 'कृषि क्रांति आंदोलन' के वैज्ञानिक नेता के रूप में ख्याति दिलाई। उनके द्वारा सदाबाहर क्रांति की ओर उन्मुख अवलंबनीय कृषि की वकालत ने उन्हें अवलंबनीय खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में विश्व नेता का दर्जा दिलाया। एम. एस. स्वामीनाथन को 'विज्ञान एवं अभियांत्रिकी' के क्षेत्र में 'भारत सरकार' द्वारा सन 1967 में 'पद्म श्री', 1972 में 'पद्म भूषण' और 1989 में 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया था। ये महान कृषि वैज्ञानिक इनका निधन 98 वर्ष की अवस्था में बीमारी के कारण अपने आवास चेन्नई में हो गया। इन्हें वर्ष २०२४ में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गई है। [1]

हरित क्रांति के अगुआ

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भारत लाखों गाँवों का देश है और यहाँ की अधिकांश जनता कृषि के साथ जुड़ी हुई है। इसके बावजूद अनेक वर्षों तक यहाँ कृषि से सम्बंधित जनता भी भुखमरी के कगार पर अपना जीवन बिताती रही। इसका कारण कुछ भी हो, पर यह भी सत्य है कि ब्रिटिश शासनकाल में भी खेती अथवा मजदूरी से जुड़े हुए अनेक लोगों को बड़ी कठिनाई से खाना प्राप्त होता था। कई अकाल भी पड़ चुके थे। भारत के सम्बंध में यह भावना बन चुकी थी कि कृषि से जुड़े होने के बावजूद भारत के लिए भुखमरी से निजात पाना कठिन है। इसका कारण यही था कि भारत में कृषि के सदियों से चले आ रहे उपकरण और बीजों का प्रयोग होता रहा था। फसलों की उन्नति के लिए बीजों में सुधार की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया था।

एम. एस. स्वामीनाथन ही वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले गेहूँ की एक बेहतरीन किस्म को पहचाना और स्वीकार किया। इस कार्य के द्वारा भारत को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता था। यह मैक्सिकन गेहूँ की एक किस्म थी, जिसे स्वामीनाथन ने भारतीय खाद्यान्न की कमी दूर करने के लिए सबसे पहले अपनाने के लिए स्वीकार किया। इसके कारण भारत के गेहूँ उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। इसलिए स्वामीनाथन को "भारत में हरित क्रांति का अगुआ" माना जाता है। स्वामीनाथन के प्रयत्नों का परिणाम यह है कि भारत की आबादी में प्रतिवर्ष पूरा एक ऑस्ट्रेलिया समा जाने के बाद भी खाद्यान्नों के मामले में वह आत्मनिर्भर बन चुका है। भारत के खाद्यान्नों का निर्यात भी किया है और निरंतर उसके उत्पादन में वृद्धि होती रही है।

सम्मान और पुरस्कार

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इन्हें वर्ष २०२४ में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गई है। [1]

एम एस स्वामिनथन पर दो भागों में लिखी गयी पुस्तक का अनावरण करते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

लंदन की रॉयल सोसायटी सहित विश्व की 14 प्रमुख विज्ञान परिषदों ने एम. एस. स्वामीनाथन को अपना मानद सदस्य चुना है। अनेक विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया है। स्वामीनाथन द्वारा प्राप्त किए गए सम्मान व पुरस्कार इस प्रकार हैं[1]-

1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए 'मैग्सेसे पुरस्कार'

1986 में 'अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार'

1987 में पहला 'विश्व खाद्य पुरस्कार'

1991 में अमेरिका में 'टाइलर पुरस्कार'

1994 में पर्यावरण तकनीक के लिए जापान का 'होंडा पुरस्कार'

1997 में फ़्राँस का 'ऑर्डर दु मेरिट एग्रीकोल' (कृषि में योग्यताक्रम)

1998 में मिसूरी बॉटेनिकल गार्डन (अमरीका) का 'हेनरी शॉ पदक'

1999 में 'वॉल्वो इंटरनेशनल एंवायरमेंट पुरस्कार'

1999 में ही 'यूनेस्को गांधी स्वर्ग पदक' से सम्मानित

'भारत सरकार ने एम. एस. स्वामीनाथन को 'पद्मश्री' (1967), 'पद्मभूषण' (1972) और 'पद्मविभूषण' (1989) से सम्मानित किया था। (2024) भारत रत्न [1]

शोध केंद्र की स्थापना

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विभिन्न पुरस्कारों और सम्मानों के साथ प्राप्त धनराशि से एम. एस. स्वामीनाथन ने वर्ष 1990 के दशक के आरंभिक वर्षों में 'अवलंबनीय कृषि तथा ग्रामीण विकास' के लिए चेन्नई में एक शोध केंद्र की स्थापना की। 'एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन' का मुख्य उदेश्य भारतीय गांवों में प्रकृति तथा महिलाओं के अनुकूल प्रौद्योगिकी के विकास और प्रसार पर आधारित रोजग़ार उपलब्ध कराने वाली आर्थिक विकास की रणनीति को बढ़ावा देना है।

प्रभावशाली व्यक्ति

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फ़ाउंडेशन में स्वामीनाथन और उनके सहयोगियों द्वारा पर्यावरण प्रौद्यौगिकी के क्षेत्र में किए जा रहे कार्य को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली है। स्वामीनाथन दक्षिण एशिया के उत्तरदायित्व के साथ पर्यावरण प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में यूनेस्को में भी पदासीन रहे हैं। उनकी महान विद्वत्ता को स्वीकारते हुए इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी और बांग्लादेश, चीन, इटली, स्वीडन, अमरीका तथा सोवियत संघ की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों में उन्हें शामिल किया गया है। वह 'वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज़' के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। 1999 में टाइम पत्रिका ने स्वामीनाथन को 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई व्यक्तियों में से एक बताया था।

सन्दर्भ

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  1. "Bharat Ratna: इस साल पांच हस्तियों को भारत रत्न, जानें अब तक कितनों को यह सम्मान". Amar Ujala. 9 February 2024. अभिगमन तिथि 10 February 2024.

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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