Udupi Sri Krishna Matha | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | Udupi |
वास्तु विवरण | |
प्रकार | Dravidian architecture |
उडुपी श्री कृष्ण मठ (तुलु: ಉಡುಪಿ ಶ್ರೀ ಕೃಷ್ಣ ಮಠ) भारत के कर्नाटक राज्य के उडुपी शहर में स्थित भगवान श्री कृष्ण को समर्पित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है।
मठ का क्षेत्र रहने के लिए बने एक आश्रम जैसा है, यह रहने और भक्ति के लिए एक पवित्र स्थान है। श्री कृष्ण मठ के आसपास कई मंदिर है, सबसे अधिक प्राचीन मंदिर 1500 वर्षों के मूल की बुनियादी लकड़ी और पत्थर से बना है।( विस्तार के लिए उडुपी देखें)
कृष्ण मठ को 13वीं सदी में वैष्णव संत श्री माधवाचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। वे द्वैतवेदांत सम्प्रदाय के संस्थापक थे।
किंवदंती है कि एक बार अत्यंत धर्मनिष्ठ एवं भगवान कृष्ण के प्रति समर्पित भक्त कनकदास को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी। इस बात ने उन्हें परेशान नहीं किया, बल्कि उन्होंने और अधिक तन्मयता के साथ प्रार्थना की। भगवान कृष्ण उनसे इतने प्रसन्न हुए कि अपने भक्त को अपना स्वर्गीय रूप दिखाने के लिए मठ (मंदिर) के पीछे एक छोटी सी खिड़की बना दी। आज तक, भक्त उसी खिड़की के माध्यम से भगवान कृष्ण की अर्चना करते हैं, जिसके द्वारा कनकदास को एक छवि देखने का वरदान मिला था।
माधवाचार्य के प्रत्यक्ष छात्रों की संख्या काफी थी। उनके पहले शिष्य थे श्री सत्या तीर्थ.अष्ट मठ के छोड़कर अन्य सभी मठ श्री पद्मनाभ तीर्थ द्वारा स्थापित किए गए थे। उनके शिष्यों को भगवान उडुपी श्री कृष्ण की पूजा करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह अष्ट मठों के यह नेतृत्व में और उनके द्वारा शासित है। 1.श्री विष्णु तीर्थ-सोडे मठ 2.श्री वामन तीर्थ-शिरुर मठ 3.श्री राम तीर्थ-कन्नियूर मठ 4.श्री अडोकशाजा तीर्थ-पेजावरा मठ 5.श्री हृषिकेष तीर्थ-पलिमारु मठ 6.श्री नरहरि तीर्थ-अडामारु मठ 7.श्री जनार्दन तीर्थ-कृष्णापुरा मठ 8.श्री उपेंद्र तीर्थ-पुट्टिगे मठ
दैनिक सेवाओं (भगवान को चढ़ावा) तथा कृष्ण मठ के संचालन का प्रबन्ध अष्ट मठों (आठ मंदिरों) द्वारा किया जाता है। अष्ट मठों में से प्रत्येक एक चक्रीय क्रम में दो साल के लिए मंदिर के प्रबंधन का कार्य करता है। उन्हें सामूहिक रूप से कृष्णमठ के रूप में जाना जाता है।
कृष्णा मठ को अपनी धार्मिक रीतियों, परंपराओं और द्वैत या तत्ववाद दर्शन की शिक्षा के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यह साहित्य के एक रूप भी दासा साहित्य का भी केंद्र है, जो उडुपी में उत्पन्न हुआ है।
ये आठ मठ पेजावरा, पुट्टिगे, पलिमारु, अडामारु, सोढे, कनियूरु, शिरुर और कृष्णापुरा हैं।
अष्ट मठो के स्वामीजी और उनके उत्तराधिकारियों के नाम नीचे दिए गए हैं:
मठ | स्वामीजी | उत्तराधिकारी |
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पेजावरा | श्री विश्ववेश तीर्थ स्वामीजी | श्री विस्वप्रसन्ना तीर्थ स्वामीजी |
पालिमारु | श्री विध्यादिशा तीर्थ स्वामीजी | |
अडामारु | श्री विश्वप्रिय तीर्थ स्वामीजी | |
पुट्टिगे | श्री सुगुनेन्द्र तीर्थ स्वामीजी | श्री सुजनानेन्द्र तीर्थ स्वामीजी |
सोढे | श्री विश्ववल्लभ तीर्थ स्वामीजी | |
कनियूरु | श्री विद्यावल्लभ तीर्थ स्वामीजी | |
शिरुर | श्री लक्ष्मीवरा तीर्थ स्वामीजी | |
कृष्णापुरा | श्री विद्यासागर तीर्थ स्वामीजी |
हर दो साल में आयोजित होनेवाले पर्याया त्योहार के दौरान, मंदिर का प्रबंधन अगले मठ को सौंप दिया जाता है। प्रत्येक मठ की अध्यक्षता एक स्वामी द्वारा की जाती है, जो अपने पर्याय के दौरान मंदिर का प्रभारी होता है। पर्याय 2008, 2010, 2012 जैसे सम सालों में आयोजित किया जाता है। मकर संक्रांति, रथ सप्तमी, माधव नवमी, हनुमा जयंती, श्री कृष्ण जन्माष्टमी, नवराथी महोत्सव, माधव जयंती (विजया दशमी), नरक चतुर्दर्शी, दीपावली, गीता जयंती इत्यादि जैसे त्यौहार हर साल पर्याय मठ के द्वारा बहुत धूम धाम से मनाये जाते हैं।